‘वैलीज ऑफ नो रिटर्न’ खा चुकी है सैकड़ों विमान!

भारत का बारमूडा ट्रायंगल

  • दुनियाभर में बेहद रहस्यमयी मानी जाती हैं ईस्ट अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियां 
  • विश्व युद्ध-2 में अमेरिकी फ्लाइंग द हंप अभियान में यहां दुर्घटनाग्रस्त हुए या लापता हुए 540 विमान 
  • चीन की मदद में चलाये अमेरिका के इस अभियान में 1700 पायलटों और अन्य सवारों की इनमें गई जान 
  • पहले भी भारत के दो एएन-32 विमान यहां हो चुके हैं लापता, आज तक नहीं चला कुछ पता 

नई दिल्ली। वायुसेना के लापता हुए एएन-32 विमान का मलबा अरुणाचल लीपा में मिला। तीन जून का लापता हुए इस विमान ने असम के जोरहाट बेस से 13 जवानों के साथ उड़ान भरी थी। हालांकि इससे पहले भी दो एएन-32 विमान लापता हो चुके हैं और उनके बारे में आज तक कुछ पता नहीं चल सका है। इसके साथ ही एक रहस्य और है जो उस जगह से जुड़ा है जहां इस एएन-32 विमान का मलबा मिला, वह करीब 12 हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसे एक तरह से भारत का बारमूडा ट्रायंगल भी कहा जाता  है। 
दरअसल अरुणाचल में जिस स्थान पर इस विमान का मलबा मिला उन घाटियों के आसपास पहले भी विमानों के मलबे मिलते रहे हैं। इनमें से कई विमान ऐसे हैं जो द्वितीय विश्व युद्ध के समय लापता हो गए थे। दरअसल द्वितीय विश्व युद्ध के समय यहां अमेरिका के 540 विमान लापता या दुर्घटना के शिकार हो गए थे। शायद यही कारण है कि अरुणाचल की इन घाटियों को पूरी दुनिया में ‘वैलीज ऑफ नो रिटर्न’ कहा जाता है। इन सभी अबूझ पहेलियों के कारण ईस्ट अरुणाचल प्रदेश की पहाड़ियां बेहद रहस्यमयी मानी जाती हैं। 
गत वर्ष के जनवरी महीने में अरुणाचल के पापुम पारे जिले के जंगलों में द्वितीय विश्व युद्ध के समय के विमाना के अवशेष मिले थे। स्थानीय युवाओं के एक दल ने विश्व युद्ध के दौरान वहां विमान गिरने की कहानियां सुनते-सुनते उन्हें ढूंढ निकालने का फैसला किया। इन्होंने 10 जनवरी को एक विमान के अवशेष ढूंढ निकाले।  वहीं, इसी साल पूर्वी अरुणाचल के रोइंग जिले के तीन स्थानीय पर्वतारोही सुरिंधी पहाड़ी पर जड़ी-बूटियां खोजने गए थे। वहां उन्हें जड़ी-बूटी को नहीं मिली, लेकिन 75 साल पुराना एक हवाई जहाज मिल गया। यह अमेरिकी वायुसेना का विमान था जिसने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान के खिलाफ लड़ाई में चीन की मदद के लिए असम के दिनजान एयरफील्ड से उड़ान भरी थी। विमान के मलबे में बड़ी संख्या में गोलियां, एक चम्मच, कैमरे के लेंस और और ऊनी दस्ताना मिला था। 

गौरतलब है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 42 महीने तक अमेरिका ने एक साहसिक और एक तरीके से आत्मघाती अभियान चलाया था। इस अभियान को नाम दिया गया था फ्लाइंग द हंप। इस अभियान के दौरान बड़ी संख्या में विमान और जवान लापता हुए थे। अमेरिका सरकार आज भी लापता लोगों की तलाश करने के लिए अपने दल यहां भेजती रहती है। ये अमेरिकी विमान चीन के कुनमिंग में लड़ रहे तत्कालीन चीन प्रमुख चियांग काई शेक के सैनिकों और अमेरिकी सैनिकों के लिए जरूरी सप्लाई पहुंचाते थे। तब असम के दिनजान एयरबेस से चीन के कुनमिंग तक एक तरह का हवाई पुल बन गया था। जापान ने जब बर्मा पर कब्जा कर लिया तो मित्र देशों की सेनाएं पूर्वी चीन में फंस गई थीं। 
इन्हें जरूरी सप्लाई भेजने के लिए एयर ट्रांसपोर्ट कमांड का गठन किया गया। अप्रैल 1942 से लेकर नवंबर 1945 तक इस कमांड ने करीब 650 टन सामग्री चीन पहुंचाई थी। इस काम में 31 हजार से ज्यादा सैनिक और करीब 650 एयरक्राफ्ट शामिल थे। इस काम के लिए उन्हें अरुणाचल प्रदेश की घाटियों से होते हुए हिमालय को पार करना पड़ता था और इस मार्ग पर पर विमान बड़ी तादाद में दुर्घटनाग्रस्त होते थे। 42 महीने के इस अभियान में अमेरिका के 540 विमान इसी क्षेत्र में या तो दुर्घटना का शिकार हो गए या लापता हो गए। इस अभियान में 1700 पायलटों और अन्य विमान यात्रियों की जान गई थी।

हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है कि फ्लाइंग द हंप मिशन के दौरान इतनी बड़ी संख्या में विमान हादसे क्यों हुए। इस क्षेत्र में इसका रहस्य जानने के लिये काफी लंबे समय तक किये गये अलग-अलग शोधों में एक बात निकलकर सामने आई कि इस इलाके के आसमान में बहुत ज्यादा टर्बुलेंस और 100 मील/घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवा यहां की घाटियों के संपर्क में आने पर ऐसी स्थितियां बनाती हैं कि यहां उड़ान बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है। वहीं, यहां की घाटियां और घने जंगलों में घिरे हुए किसी विमान के मलबे को तलाश करना ऐसा मिशन बन जाता है जिसमें सालों तक तलाश करने के बावजूद विमानों के मलबे तक का पता नहीं चल पाता है। 

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