- ऐसे दलों के चुनाव चिन्ह जब्त करने की याचिका पर केंद्र और चुनाव आयोग को ‘सुप्रीम’ नोटिस
नई दिल्ली। सियासी दलों द्वारा मतदाताओं को रिझाने के लिए सरकारी कोष से अतार्किक मुफ्त ‘उपहारों’ के वादे के खिलाफ दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख दिखाते हुए केंद्र और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में ऐसे राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द व उनके चुनाव चिन्ह जब्त करने की मांग की गई है जो मतदाताओं को मुफ्त में सुविधाएं देने के वादे कर रहे हैं। पांच राज्यों के मौजूदा चुनावों में भी कई दलों ने आम वोटरों को बिजली व अन्य सुविधाएं मुफ्त में देने का वादा किया है। किसान की कर्जमाफी तो हर चुनाव में बड़ा चुनावी आकर्षण रहा है।
आज मंगलवार को प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर इस याचिका पर केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है। हालांकि पीठ ने याचिका में चुनिंदा राज्यों व राजनीतिक दलों का जिक्र करने पर आपत्ति जताई है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील विकास सिंह ने कहा कि सभी दल चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए तरह तरह के मुफ्त उपहार देने का वादा करते हैं। उन्होंने कहा कि दरअसल इन वादों का बोझ आम आदमी को उठाना पड़ता है। कुछ राज्य पहले से ही भारी कर्ज में हैं। लिहाजा राजनीतिक दलों द्वारा इस तरह के वादों पर लगाम लगाना जरूरी है।
याचिका में कहा गया है कि राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव के समय मुफ्त ‘उपहार’ की घोषणा से मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित किया जाता है। इससे चुनाव प्रक्रिया की शुद्धता प्रभावित होती है। इस तरह के ‘प्रलोभन’ ने निष्पक्ष चुनाव की जड़ों को हिलाकर रख दिया है। याचिका में राजनीतिक दलों के ऐसे फैसलों को संविधान के अनुच्छेद-14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन बताया गया है। याचिका में चुनाव आयोग को ऐसे राजनीतिक दलों का चुनाव चिन्ह को जब्त करने और पंजीकरण रद्द करने का निर्देश देने की मांग की है, जिन्होंने सार्वजनिक धन से तर्कहीन मुफ्त ‘उपहार’ वितरित करने का वादा किया था।
याचिका में दावा किया गया है कि राजनीतिक दल गलत लाभ के लिए मनमाने ढंग से या तर्कहीन ‘उपहार’ का वादा करते हैं और मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाते हैं, जो रिश्वत और अनुचित प्रभाव के समान है। याचिका में उदाहरण देते हुए कहा गया है कि अगर आम आदमी पार्टी( आप) पंजाब में सत्ता में आती है तो उसे राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए हर माह 12,000 करोड़ रुपये की जरूरत है। वहीं शिरोमणि अकाली दल के सत्ता में आने पर प्रति माह 25,000 करोड़ रुपये और कांग्रेस के सत्ता में आने पर 30,000 करोड़ रुपये की जरूरत होगी, जबकि राज्य का जीएसटी संग्रह केवल 1400 करोड़ रुपये है।
याचिका में कहा गया है कि वास्तव में कर्ज चुकाने के बाद पंजाब सरकार वेतन-पेंशन भी नहीं दे पा रही है तो वह ‘उपहार’ कैसे देगी? कड़वा सच यह है कि पंजाब का कर्ज हर साल बढ़ता जा रहा है। राज्य का बकाया कर्ज बढ़कर 77,000 करोड़ रुपये हो गया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में ही 30,000 करोड़ रुपये जमा हो रहे हैं। याचिकाकर्ता उपाध्याय ने कहा कि वह समय दूर नहीं है जब एक राजनीतिक दल कहेगा कि ‘हम आपके आवास में आपके लिए खाना बनाएंगे’ और दूसरा यह कहेगा कि ‘हम न केवल खाना बनाएंगे, बल्कि आपको खिलाएंगे।’ सभी दल लोकलुभावन वादों के जरिए दूसरे दलों से आगे निकलने की जुगत में हैं। इसलिये इन प्रलोभनों पर अंकुश लगाने की जरूरत है।