नई दिल्ली। आज गुरुवार को केंद्र सरकार ने चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में ऐतिहासिक फैसला किया है। चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ी जातियों (ओबीसी) को 27% और आर्थिक रूप से कमजोर कैंडिडेट को 10% आरक्षण दिया जाएगा। फैसला 2021-22 के सेशन से लागू होगा।
इससे हर साल ऑल इंडिया कोटा स्कीम (AIQ) के तहत एमबीबीएस, एमएस, बीडीएस, एमडीएस, डेंटल, मेडिकल और डिप्लोमा में 5,550 कैंडिडेटों को फायदा मिलेगा। प्रधानमंत्री ने इस संबंध में 26 जुलाई को बैठक की थी और वह पहले भी इन वर्गों को आरक्षण दिए जाने की बात कह चुके थे। 26 जुलाई को हुई मीटिंग के 3 दिन बाद सरकार ने ये फैसला ले लिया है। इस बारे में मोदी ने सोशल मीडिया के जरिए जानकारी दी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने बताया कि देश में पिछड़े और कमजोर आय वर्ग के उत्थान के लिए उन्हें आरक्षण देने को सरकार प्रतिबद्ध है।
मोदी सरकार के इस फैसले के बाद एमबीबीएस में करीब 1,500 ओबीसी कैंडिडेट और पीजी में 2,500 ओबीसी कैंडिडेटों को हर साल इस आरक्षण का लाभ मिलेगा। एमबीबीएस में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के 550 और पोस्ट ग्रेजुएशन में करीब 1,000 कैंडिडेट हर साल इस आरक्षण से लाभान्वित होंगे। उल्लेखनीय है कि ऑल इंडिया कोटा स्कीम 1986 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के तहत शुरू की गई थी। इसका उद्देश्य दूसरे राज्य के स्टूडेंटों को अन्य राज्यों में भी आरक्षण का लाभ उठाने में सक्षम बनाना था। वर्ष 2008 तक ऑल इंडिया कोटा स्कीम में कोई आरक्षण नहीं था, लेकिन वर्ष 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने इस स्कीम में अनुसूचित जाति के लिए 15% और अनुसूचित जनजाति के लिए 7.5% आरक्षण की शुरुआत की थी।
वर्ष 2019 में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के कैंडिडेट्स को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए एक संवैधानिक संशोधन किया गया था। इसके मुताबिक मेडिकल और डेंटल कॉलेजों में सीटें बढ़ाई गई ताकि अनारक्षित वर्ग पर इसका कोई असर ना पड़े। लेकिन इस श्रेणी को ऑल इंडिया कोटा योजना में शामिल नहीं किया गया था। इससे पहले केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने 12 जुलाई को नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट NEET- 2021 की तारीख का ऐलान करते हुए बताया था कि इस बार भी यह परीक्षा ओबीसी वर्ग को बिना आरक्षण दिए ही होगी। इस बयान के बाद ही कई छात्र संगठन ने देश व्यापी हड़ताल की धमकी दे रहे थे। इसके साथ कई राजनीतिक दलों ने भी आरक्षण की मांग की थी।