उत्तराखंड में पहली बार एक साथ टूटे ये दो रिकॉर्ड!

हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का मामला

  • पहला सीएम का पक्ष जाने बिना हाईकोर्ट ने त्रिवेंद्र पर आरोपों की सीबीआई जांच का दिया था आदेश
  • दूसरा सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हाईकोर्ट द्वारा इस तरह का ‘सख्त आदेश’ देने से रह गये ‘सब भौंचक्के’
  • जबकि पत्रकारों की याचिका में नहीं किया गया था रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध

देहरादून। उत्तराखंड में पिछले तीन दिनों में अपनी तरह के दो रिकॉर्ड एक साथ टूटे हैं। पहला सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत का पक्ष सुने बिना हाईकोर्ट ने उन पर लगाये गये गये आरोपों की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश सुना दिया। उत्तराखंड के इतिहास में यह अपनी तरह की पहली घटना है जब किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ हाईकोर्ट ने अपने स्तर पर इस तरह का फैसला सुनाया हो। दूसरा इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट के  न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अध्यक्षता वाली पीठ का यह कहना कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर ही हाईकोर्ट द्वारा इस तरह का ‘सख्त आदेश’ देने से ‘सब भौंचक्के’ रह गये क्योंकि पत्रकारों की याचिका में रावत के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का अनुरोध भी नहीं किया गया था। उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर स्वयं आश्चर्य व्यक्त किया है कि इस प्रसंग में न तो मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पक्षकार थे और न ही याचिका में उनके बारे में कोई प्रार्थना की गई थी। इसके बावजूद उच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिया वह सबको आश्चर्य में डालने वाला है। हाईकोर्ट का यह फैसला और उस पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के रोक की गूंज लंबे समय तक उत्तराखंड की फिजाओं में सुनाई देती रहेगी और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच का आदेश देने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी है। दो पत्रकारों ने आरोप लगाया था कि वर्ष 2016 में झारखंड के ‘गौ सेवा आयोग’ के अध्यक्ष पद पर एक व्यक्ति की नियुक्ति का समर्थन करने के लिये उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के रिश्तेदारों के खातों में धन जमा किया गया था। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में रावत की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि मुख्यमंत्री को सुने बगैर प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा सकती और इस तरह का आदेश निर्वाचित सरकार को अस्थिर करेगा।
वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था, ‘एक निर्वाचित सरकार को इस तरह से अस्थिर नहीं जा सकता। सवाल यह है कि पक्षकार को सुने बगैर ही क्या स्वत: ही इस तरह का आदेश दिया जा सकता है।’ उल्लेखनीय है कि नैनीताल हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ आरोपों की प्रकृति पर विचार करते हुए सच को सामने लाना उचित होगा। यह राज्य के हित में होगा कि संदेह दूर हो। इसलिए मामले की जांच सीबीआई करे। उच्च न्यायालय ने यह फैसला दो पत्रकारों- उमेश शर्मा और शिव प्रसाद सेमवाल- की दो अलग-अलग याचिकाओं पर सुनाया था। इन याचिकाओं में पत्रकारों ने इस साल जुलाई में अपने खिलाफ भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी को रद्द करने का आग्रह किया था।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और दो पत्रकारों को नोटिस जारी कर चार हफ़्ते में जवाब देने को भी कहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब भाजपा ने कांग्रेस के साथ ही कपिल सिब्बल पर भी हमला बोलते  हुए कहा है कि कभी पत्रकार उमेश शर्मा को भ्रष्ट बताने वाले सिब्बल अब उन्हीं के वकील बनकर उन्हें पाक साफ बता रहे हैं। उत्तराखंड भाजपा के मुख्य प्रवक्ता मुन्ना सिंह चौहान ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा था कि जिस तरह से कांग्रेस ने उतावलापन दिखाया, उससे साबित होता है कि शिकायतकर्ता उमेश शर्मा और कांग्रेस ने एक साजिश के तहत सीएम की छवि खराब करने के लिए इस आपराधिक साजिश को अंजाम दिया।
उन्होंने कपिल सिब्बल पर भी सवाल उठाते हुए कहा था कि हरीश रावत स्टिंग प्रकरण में कपिल सिब्बल ने जिस उमेश शर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए, वही कपिल सिब्बल अब ताजा मामले में उमेश शर्मा के वकील बनकर उमेश शर्मा को पाक साफ बता रहे हैं। एक जैसे केस में कपिल सिब्बल पक्ष-विपक्ष के वकील नहीं हो सकते।
उधर उत्तराखंड के प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ सीबीआई जांच के आदेश पर रोक का स्वागत करते हुए कहा कि यह आदेश बहुत महत्वपूर्ण है और मुख्यमंत्री को बदनाम करने तथा सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करने वालों को तगड़ा झटका लगा है।
साथ ही इस मामले पर हायतौबा मचाने वाली कांग्रेसके लिए बहुत शर्मनाक स्थिति पैदा हो गई है और वह चेहरा दिखाने लायक़ नहीं रही है। कांग्रेस व अन्य दल सत्ता प्राप्त करने की छटपटाहट में इतने बेचैन हो गए हैं कि वे अपना विवेक खो बैठे है। यही कारण है बिना आधार के मामले को उछालकर वे न केवल मुख्यमंत्री जी का त्यागपत्र मांगने लगे बल्कि राजभवन कूच कर गए। इससे साफ है कि कांग्रेस और उनके साथी दल कितने बौखलाए हुए हैं और मतिभ्रम के शिकार हैं।
उन्होंने कहा कि जिस कांग्रेस के नेता स्वयं बड़े बड़े घोटालों में फंसे हैं, जिस पार्टी के अधिकांश नेता जमानत पर चल रहे हैं, जिस पार्टी के नेताओं की हरकतों का स्टिंग ऑपरेशन में खुलासा हो चुका है और जिस पार्टी के नेताओं के ख़िलाफ़ सीबीआई जांच चल रही है, उसके नेता जब मुख्यमंत्री रावत के खिलाफ बयानबाजी करते हैं और त्यागपत्र माँगते हैं तो इससे साफ है की वह बहुत बड़ी कुंठा के शिकार हैं और षड्यंत्रों में शामिल हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से ये कांग्रेस नेता अब चेहरा दिखाने लायक भी नहीं रहे हैं। 

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