सच साबित हुई चिपको आंदोलन की प्रणेता की पुकार

  • पर्यावरण के प्रति लापरवाही लील रही रैंणी गांव
  • प्रशासन गांव के पुनर्वास के लिए तैयारी में जुटा

देहरादून। चिपको आंदोलन की धरती रैंणी सुरक्षित नहीं है। चिपकों आंदोलन की प्रणेता गौरा देवी ने करीब 48 साल पहले रंैणी के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने की आशंका जता दी थी। दरअसल, चिपको आंदोलन पर्यावरण रक्षा का आंदोलन था। महिलाओं ने यह आंदोलन वर्ष 1973 में पेड़ों की कटाई के विरोध में किया था। रैंणी गांव में 2400 से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, लेकिन गौरा देवी के नेतृत्व में गांव की 27 महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर वन विभाग के इरादों को नाकाम कर दिया था। बाद में वन विभाग को चिपको आंदोलन के आगे हथियार डालने पड़े थे। पर्यावरण के प्रति लापरवाही बरतने पर आज भूस्खलन और भूधंसाव की वजह से इस गांव के पुनर्वास की कार्रवाई शुरू हो चुकी है। जल्द ही यह ऐतिहासिक गांव सिर्फ यादों में रह जाएगा। जोशीमठ से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रैणी गांव में लगभग 55 परिवार रहते हैं। सात फरवरी को ऋषि गंगा में आई बाढ़ के बाद रैणी गांव भूस्खलन की चपेट में आ गया था। गांव के निचले हिस्से और नीती घाटी की ओर से भूस्खलन शुरू हो गया था और संरक्षित प्रजाति के हजारों पेड़ बाढ़ की भेंट चढ़ गए थे। 14 जून को भारी बारिश के दौरान गांव के निचले हिस्से में मलारी हाईवे का करीब 40 मीटर हिस्सा टूटकर धौली गंगा में समा गया था। उसके बाद से गांव में भूस्खलन का दायरा भी बढ़ गया। मलारी हाईवे को सुचारु करने के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के पास भूमि ही नहीं बची तो रैणी गांव के खेत और मकानों को ध्वस्त कर हाईवे निर्माण की योजना बनाई गई। 16 जून को प्रशासन ने शासन से रैणी गांव के भूगर्भीय सर्वेक्षण के लिए टीम भेजने का आग्रह किया। जियोटेक विशेषज्ञ बी वेंकटेश्वरलू, भूविज्ञानी जीवीआरजी अचार्यलू और ढलान स्थिरीकरण विशेषज्ञ डाॅ. मनीष सेमवाल ने तीन दिनों तक गांव का चारों तरफ से निरीक्षण किया। टीम अब रिपोर्ट शासन को सौंपेगी। टीम ने गांव के पुनर्वास के लिए सुभांई गांव के समीप राजस्व भूमि व दो अन्य स्थानों का निरीक्षण भी किया। जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया ने बताया कि आपदा को देखते हुए रैणी गांव का पुनर्वास किया जाना जरूरी है। भूगर्भीय सर्वेक्षण रिपोर्ट मिलने के बाद यह देखा जाएगा कि कितने परिवारों को यहां से हटाया जाना है। संभावित स्थान ग्रामीणों को दिखा दिए गए हैं। गांव के पुनर्वास के लिए प्रस्ताव शासन को भेजा जाएगा।

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