उत्तराखंड में अब बच्चे पढ़ेंगे ‘खुशियों का पाठ’!

सुखद पहल

  • दिल्ली की तर्ज पर उम्र के हिसाब से तीन श्रेणियों बांटा जाएगा पाठ्यक्रम
  • बीस हजार से अधिक प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूलों में शुरू करने की तैयारी 
  • इस पाठय़क्रम से प्रदेश के सात लाख से ज्यादा स्कूली बच्चे होंगे लाभान्वित
देहरादून। प्रदेश सरकार अब दिल्ली की तर्ज पर प्रदेश के बच्चों को ‘खुशियों का पाठ’ पढ़ाने जा रही है। विद्यालयी शिक्षा विभाग ने प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों में एक जुलाई से इस बाबत कक्षाएं चलाने की तैयारी शुरू कर दी है। खुशियों की पढ़ाई का पाठ पहले पीरियड में पढ़ाया जाएगा और उसमें पाठ्यक्रम से इतर चित्रकला, गायन, कहानी सुनाने व खेल आदि होंगे। इस पाठय़क्रम को शुरू करने और उसे अंतिम रूप देने के लिए शिक्षा विभाग उन गैर सरकारी स्वयंसेवी संस्थाओं के साथ काम कर रहा है जो पहले से शिक्षा विभाग के साथ मिल कर पढ़ाई को रोचक बनाने का काम कर रहे हैं। 
यह पाठय़क्रम प्रदेश सरकार के 20 हजार से अधिक प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूलों में शुरू होगा और इस पाठय़क्रम से प्रदेश के सात लाख से ज्यादा स्कूली बच्चे लाभान्वित होंगे। एससीईआरटी निदेशक सीमा जौनसारी का कहना है कि प्रदेश के बहुत से स्कूलों में बच्चे लंबी यात्रा करके पहुंचते हैं और इस कारण थके हुए और तनाव में होते हैं। खुशियों की पढ़ाई से इन बच्चों को तनावमुक्त किया जा सकेगा और इससे बच्चों का ध्यान सामान्य पढ़ाई में भी अधिक लग सकेगा। दरअसल खुशियों की पढ़ाई का विचार दिल्ली की आप पार्टी की सरकार की पहल से प्रेरित है। जहां पिछले साल से यह पहल लागू की गई है। 
सीमा का कहना है कि पढ़ाई के इस पाठय़क्रम को लागू करने से पहले शिक्षा विभाग के अधिकारियों को दिल्ली दौरे पर भेजा जाएगा ताकि वे देख सकें कि वहां खुशियों का पाठय़क्रम कैसे लागू किया जा रहा है और उत्तराखंड की विशिष्ट परिस्थितियों में इसे कैसे लागू किया जा सकता है। एससीईआरटी के मीडिया कोऑर्डिनेटर मोहन सिंह बिष्ट का कहना है कि चुनाव बीत जाने के बाद हैप्पीनेस क्लासेस के लिए जल्द ही शिक्षकों का प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया जाएगा। शिक्षा विभाग इसके लिए कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं और बच्चों की शिक्षा के विशेषज्ञों की की मदद लेने की योजना बना रहा है। उनका कहना है कि खुशियों की पढ़ाई से बच्चों और शिक्षकों के बीच का रिश्ता और मजबूत होगाक्योंकि उनके बीच मे रिश्ते सहज और दोस्ताना हो सकेंगे। इससे बच्चों की सीखने की क्षमता भी बढ़ेगी और उनमें मौजूद प्रतिभा का सर्वागीण विकास भी होगा जो पाठय़क्रम का सबसे अहम उद्देश्य है।

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