उत्तराखंड : उम्रे दराज मांग कर लाये थे चार दिन, दो आरजू में कट गये और दो इंतजार में!

समय का फेर

  • दल बदल करने के बावजूद पूरी नहीं हो पाई कई हैवीवेट नेताओं की सीएम बनने की हसरत
  • मोदी और शाह की पहली ‘पसंद’ बने पुष्कर, भाजपा जीती तो धामी ही होंगे फिर मुख्यमंत्री
  • अब बहुत कठिन हुई डगर ‘पनघट’ की, अन्य विकल्प तलाशने की कोशिश में जुटे दिग्गज

देहरादून। अचानक बदले घटनाक्रम में काबीना मंत्री रहे यशपाल आर्य की पुत्र समेत कांग्रेस में घर वापसी से कई सियासी निहितार्थ निकाले जा रहे हैं। सियासी गलियारों में इस तरह की चर्चाएं हवा में तैर रही हैं कि मुख्यमंत्री का सपना संजोये कई हैवीवेट नेताओं को अब भाजपा में भविष्य नहीं दिख रहा है। दिलचस्प बात यह है कि दल बदल के पीछे उनकी सीएम की कुर्सी पर आसीन होने की हसरत भी छिपी थी। मजे की बात यह है कि ये दिग्गज पहले भी भारी भरकम विभागों केे कैबिनेट मंत्री थे और अब भी वहीं के वहीं हैं।
भारी बहुमत होने के बावजूद पहले तो इन दिग्गजों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत की विदाई इस अंदाज में कराई, जैसे उन्हें सीएम पद से नहीं हटाया गया तो उत्तराखंड की राजनीति में ‘तूफानी’ उलटफेर हो जाएगा। इसके बाद उनकी उम्मीदों को तब झटका लगा जब तीरथ सिंह रावत को सीएम की कुर्सी पर आसीन कर दिया गया। तमाम दिलचस्प बयानों और घटनाक्रम के चलते मात्र तीन माह में ही तीर ‘तीर्थयात्रा’ पर निकल गये। इसके बाद फिर इन तमाम दिग्गजों की बांछें खिल उठीं और उनकी बांहें फड़कने लगीं, लेकिन भाजपा आलाकमान ने युवा सीएम पुष्कर सिंह धामी पर दांव खेला तो इनकी रही सही उम्मीदों पर पानी फिर गया और ये जनाब ‘कोपभवन’ में चले गये।
मजे की बात यह है कि आगामी सरकार बनने की स्थिति में भी इन हैवीवेट दिग्गजों को सीएम की कुर्सी मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे हैं। इसकी एक अहम वजह सीएम पुष्कर धामी का पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह की नजरों में चढ़ जाना भी है।
भाजपा ने तीन बार सीएम बदला, लेकिन हर बार फैसला अप्रत्याशित ही रहा। हैवीवेट नेताओं को कोई तरजीह नहीं मिल पाई। अब मोदी और अमित शाह से लेकर अन्य केंद्रीय मंत्रियों ने धामी की सार्वजनिक तौर पर तारीफ की। इससे साफ दिख रहा है कि भाजपा अगर 2022 के चुनाव में सत्ता बचाने में सफल हो जाती है तो सीएम का ताज पुष्कर के सर ही सजने की संभावना है।
इन हालात में इन हैवीवेट नेताओं को साफ दिख रहा है कि भाजपा में उनका कोई भविष्य नहीं है। यानी सीएम बनने का उनका ख्वाब भाजपा में पूरा नहीं सकता। उधर सियासी गलियारों में चर्चा है कि यशपाल आर्य के भाजपा छोड़ने की एक बड़ी वजह यह बात भी बनी। अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि ये हैवीवेट नेता क्या भाजपा में ही रहकर सियासत करेंगे या फिर सीएम की कुर्सी का अपना सपना सच करने के लिए कोई बड़ा कदम उठाते हैं।

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