उत्तराखंड के किसान खुश : बोले- आंदोलन में जिनकी मौत हुई उन्हें दें शहीद का दर्जा

देहरादून। पूरे प्रदेश के किसानों ने कृषि कानूनों की वापसी के ऐलान का स्वागत किया है। डोईवाला के किसानों ने कहा कि लंबे समय से डोईवाला किसान आंदोलन का केंद्र रहा है। यहां संयुक्त किसान मोर्चा के अध्यक्ष ताजेंद्र सिंह ने कहा कि किसानों के लिए यह बड़ी जीत है।
गौरतलब है कि गुरु नानक के प्रकाश पर्व पर आज शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने के ऐलान के बाद उत्तराखंड के किसानों ने खुशी का इजहार किया है। डोईवाला के किसानों ने कहा कि लंबे समय से डोईवाला किसान आंदोलन का केंद्र रहा है। यहां टोल बैरियर और रेल रोको आंदोलन के अलावा नियमित धरना प्रदर्शन होते रहे हैं। किसान आंदोलन के लिए संयुक्त किसान मोर्चा गठित कर यहां किसानों ने आंदोलन को गति दी। संयुक्त किसान मोर्चा के अध्यक्ष ताजेंद्र सिंह ने कहा कि किसानों के लिए यह बड़ी जीत है। अब मोदी सरकार को आंदोलन में शहीद हुए किसानों को शहीद का दर्जा देना चाहिए।
गुरदीप सिंह ने कहा कि किसानों के लिए आज बेहद खुशी का मौका है। किसान आंदोलन से जुड़े उम्मेद वोरा ने कहा कि किसानों का संघर्ष रंग लाया है।भारतीय किसान यूनियन टिकैत ग्रुप के जिला अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह खालसा ने कहा कि किसानों की एकता से केंद्रीय कृषि बिल वापस हुए हैं। किसान सभा के दलजीत सिंह, जाहिद, अंजू, बलवीर सिंह समेत तमाम आंदोलनकारी किसानों ने इसे किसानों की जीत बताया है।
कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव काजी निजामुद्दीन ने कहा कि ये तीनों कानून किसानों पर सबसे बड़ा अभिशाप थे। जिनकी वजह से किसानों का भविष्य असुरक्षा में आ गया था। लंबे समय से किसान आंदोलन कर रहे थे। लाठी-गोली खाने के बावजूद वो डिगे नहीं और आखिर में केंद्र सरकार को झुकना ही पड़ा। नरेंद्र मोदी द्वारा तीनों कृषि कानून वापस लेने की घोषणा का हरिद्वार के किसान नेताओं ने स्वागत किया। भारतीय किसान यूनियन जिला अध्यक्ष विजय कुमार शास्त्री ने कहा कि एक साल के लंबे संघर्ष के बाद सरकार जगी है। यह हमारी पहली जीत है।
उन्होंने कहा कि हमारे राष्ट्रीय किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि जब तक सरकार संसद में बिल को पास नहीं करती, तब तक धरना प्रदर्शन जारी रहेगा। जब तक हमारे नेताओं का कोई आदेश नहीं आता, तब तक हमारा धरना जारी रहेगा। किसान एक साल से सर्दी, धूप और बरसात में अपने हक के लिए सड़क पर पड़ा है। लेकिन सरकार नहीं चेती। आंदोलन में 700 किसानों से अधिक शहादतें हो चुकी है। जिसे भुलाया नहीं जा सकता। किसानों की शहादत पर ही यह जीत मिली है।
मोदी सरकार का फैसला काश्तकारों के हित में
लालढांग में मोदी सरकार द्वारा लिए गए फैसले पर नेताओं व किसानों अपनी अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की। वरिष्ठ कांग्रेस नेता गुरजीत सिंह लहरी ने कहा कि कृषि कानून का वापस होना देश के किसानों की बहुत बड़ी जीत है। मोदी ये काम पहले कर देते तो किसी किसान की शहादत न होती। राहुल गांधी ने पहले ही कह दिया था कि आने वाले समय मे सरकार को ये काले कानून वापस लेने पड़ेंगे।
किसान शैलेंद्र पाठक का कहना है कि काश्तकारों को अधिकार है कि अपनी फसल को कहीं भी उचित दामों पर बेचकर बिचौलियों से बच सके। ब्रजमोहन पोखरियाल रसूलपुर ने कहा कि मोदी सरकार को यह फैसला पहले ही ले लेना चाहिए था। विनोद कुमार नयागांव ने कहा कि किसानों को इसका फायदा मिलेगा, वह अपना अनाज कहीं भी खुले बाजार में बेच सकते हैं।
भाकपा के गढ़वाल सचिव इंद्रेश मैखुरी का कहना है कि यह देश के किसान आंदोलन की जीत है। देश का इतिहास यह याद रखेगा कि जिस समय इस देश के तमाम संसाधनों की हुकूमत द्वारा बोली लगाई जा रही थी, उस वक्त इस देश के किसानों ने अपनी जान की बाजी लगाकर न केवल कृषि भूमि को कॉरपोरेट के शिकंजे में जाने से बचाया, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा को बचाने के लिए भी अपना जीवन होम कर दिया।
उन्होंने कहा कि यह किसान आंदोलन, देश में अपने हक-अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों को प्रेरित करेगा कि बहुमत के मद में चूर सत्ता को झुकाने के लिए एकजुट आंदोलन ही एक मात्र रास्ता है। यह याद रखा जाना चाहिए कि इसी सरकार ने किसानों को दिल्ली आने से रोकने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग खुदवा दिए, पानी की बौछारें कीं और लाठी-डंडे चलाए, किसानों को खालिस्तानी और आतंकवादी तक कहा।
उन्होंने कहा कि किसान आंदोलन में फूट डालने और हिंसा फैलाने के कुत्सित प्रयास किए। खुद प्रधानमंत्री ने आंदोलनजीवी कहकर उनका उपहास उड़ाया और जब इतने से भी मन नहीं भरा तो केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे ने अपनी गाड़ी से किसानों को रौंद कर मार डाला। अभी तक मोदी सरकार ने उस मंत्री को मंत्रिमंडल में बनाए रखा है। इतने सबके बावजूद यदि प्रधानमंत्री को कृषि बिलों को वापस लेने की घोषणा करनी पड़ी है तो यह किसान आंदोलन की एकजुटता और उसके कुशल नेतृत्व के दम पर ही संभव हो पाया है, जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी संघर्ष की लौ को कमजोर नहीं पड़ने दिया। जिसका नतीजा आज कृषि कानूनों की वापसी के रूप में आया है।

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