जागो उत्तराखंडी जागो : हमारे पुरखों की धरोहर बेनीताल पर किसका कब्जा!

  • राजीव सरीन नाम के व्यक्ति ने लगाया है निजी संपत्ति का बोर्ड
  • स्वामी मुकुंद कृष्ण दास ने अपने फेसबुक वाॅल पर मामला किया उजागर
  • यूकेडी ने उखाड़ फेंका बुग्याल में लगा बोर्ड
  • पहाड़ों के खूबसूरत बुग्यालों पर बाहरी राज्यों के माफियाओं की गिद दृष्टि

देहरादून। बेनीताल चमोली जिले के गैरसैंण के निकट रमणिक बुग्याल है। गैरसैंण राजधानी बनाने की मांग को लेकर बाबा मोहन उत्तराखंडी ने 38 दिन अनशन कर इसी स्थान पर शहादत दी थी। लेकिन इस खूबसूरत बुग्याल पर माफियाओं की गिद दृष्टि पड़ गई है। हैरत की बात यह है कि यहां राजीव सरीन नाम के व्यक्ति ने अपनी निजी संपत्ति का बोर्ड लगा दिया है। इतना ही नहीं यहां जाने के लिए जो मार्ग बनाया गया था। उसको जगह-खोदकर खुर्दबुद कर दिया है। ताकि किसी तरह से सैलानी नहीं पहुंच पाएं। यहां पहले एक खूबसूरत तालाब था। जिसके नाम से ही यहां का नाम बेनीताल पड़ा था। किसी दौर में चाय का उत्पादन होता था। बताया जाता है कि राजीव सरीन का दावा है कि अंग्रेजों ने उनके पूर्वजों को यह 650 एकड़ भूमि बेची थी। लेकिन प्रशासन से लेकर शासन तक किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं गया है। प्रदेश की धरोहर पर किसी निजी व्यक्ति के कब्जे का सरेआम बोर्ड लगा होना कई सवाल खड़े करता है। स्थानीय लोगों का कहना है कि यह व्यक्ति कई वर्षों से इन बुग्यालों पर कब्जा किये बैठा है। कुछ सालों से बेनीताल महोत्सव भी नहीं होने दिया जा रहा है।

जानकारी के मुताबिक बेनीताल का आजादी से पूर्व देश की 48 टी-स्टेटों में इसका विशेष स्थान था, लेकिन धीरे-धीरे ये उपेक्षित होता रहा। वर्तमान में यह आदित्य सरीन और राजीव सरीन के नाम है। बदरीनाथ वन प्रभाग के अधीन बेनीताल क्षेत्र के अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। एक जनवरी 1978 के आधार पर 700 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले बेनीताल में वन क्षेत्र की सैंपलिंग की गई। वन संपदा की प्रजाति वार गणना और मूल्यांकन कर रिपोर्ट डीएम को भेजी गई थी। इसका क्या हुआ कोई अता-पता नहीं है।

ताजा प्रकरण इसलिए सामने आया कि स्वामी मुकुंद कृष्ण दास को पता चला कि बेनीताल में पानी सूख गया है। वृक्षाबंधन अभियान के तहत बेनीताल के रिवाइवल के लिए (आरटीआई लोक सेवा) सरकार को क्या सुझा सकती है, यह जानने के लिए बेनीताल में पहुंचे। वह निजी संपत्ति का बोर्ड देखकर चकित रह गए। उन्होंने इस बारे में पूरी जानकारी अपने फेसबुक वाॅल पर साझा की है। बेनीताल को बचाने के लिए बेनीताल संघर्ष समिति भी गठित की गई है। लेकिन इसके संरक्षण के लिए वो भी असहाय नजर आ रहे हैं।

बेनीताल में भूमि कब्जाने का मामला प्रकाश में आने पर यूकेडी के नेताओं ने निजी संपत्ति के बोर्ड को उखाड़ दिया है। उमेश खण्डूड़ी ने वरिष्ठ नेता के एल शाह’ व यूकेडी के अन्य कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर अतिक्रमण को हटाया। खण्डूड़ी ने कहा कि खुद उनके परदादाओं के समय से ये यहां के गांवों का गौचर क्षेत्र था तो कैसे ये जमीन किसी एक की हो सकती है।

भू कानून क्यों है जरूरी
पड़ोसी राज्य हिमाचल में कानूनी प्रावधानों के चलते कृषि भूमि की खरीद नामुमकिन है। सिक्किम में भी भूमि की बेरोकटोक बिक्री पर रोक के लिए बीते वर्ष ही कानून बना है। मेघालय का कानून भी भूमि बिक्री पर पाबंदी लगाता है। जब दूसरे हिमालयी राज्यों में कानून हैं तो फिर उत्तराखंड में क्यों नहीं है। राज्य में एक सशक्त कानून लाना चाहिए। ताकि बाहरी लोग यहां पहाड़ों में जमीन की खुली लूट ना कर सके।

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