…तो हजारों प्रवासियों को रोजगार देने जा रहे चीड़ के वन!

  • बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने के प्रयास के तहत लीसा निकालने की नई तकनीकी मोडीफाइड ‘बोर होल’ पद्वति के प्रचार में जुटा वन विभाग

थराली से हरेंद्र बिष्ट।
वन विभाग के प्रयासों से उत्तराखंड के हजारों प्रवासियों को पहाड़ों के लिए अभिशाप माने जाने वाला चीड़ का पेड़ ही वरदान साबित होने जा रहा है। वन विभाग द्वारा बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराने के प्रयास के तहत लीसा निकालने की नई तकनीकी मौडीफाईड ‘बोर होल’ पद्वति का प्रचार किया जा रहा है। उससे आशा जगने लगी है कि आने वाले समय में यहां के बेरोजगारों को चीड़ के पेड़ों से बेहतरीन रोजगार के मौके मिल सकते हैं।
दरअसल राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में चीड़ वनस्पति बहुतायत मात्रा में पाई जाती हैं। इस पेड़ को जंगलों में आग लगने का प्रमुख कारण मानने के साथ ही भूमि की उर्वरा शक्ति को नष्ट करने वाली वनस्पतियों में माना जाता है। आमतौर पर इमारती लकड़ियों के अलावा जलाऊं लकड़ी के रूप में ही इसका ग्रामीण क्षेत्रों में उपयोग किया जाता रहा हैं। हालांकि इससे कीमती लीसा निकलता जरूर है किन्तु अधिक मेहनत एवं कम मजदूरी के कारण नेपाली सहित बाहरी क्षेत्रों के मजदूर ही इससे रोजगार प्राप्त कर पा रहे हैं।

इस वजह से स्थानीय लोग इस ओर अधिक ध्यान देने को तक तैयार नही हैं। अब तक यहां पर लंबे समय से रील पद्वति से चीड़ के पेड़ों से लीसा निकाला जाता रहा हैं। इसमें जहां आधिक मेहनत लगती हैं, वहीं अपेक्षाकृत लीसा उत्पादन नहीं मिल पा रहा हैं। इसके अलावा काफी मात्रा में जंगलों में ही लीसा कई कारणों से नष्ट हो जाता हैं। जिससे लोग इसे रोजगार के रूप में चुनने को तैयार नही हैं। इन्ही बातों को देखते हुए पिछले कुछ समय से वन विभाग ने राज्य में लीसा निकालने की एक नई मोडीफाइड (बोर होल) पद्धति ईजाद की हैं। जिससे माना जा रहा हैं कि स्थानीय लोगों को काफी लाभ मिलेगा और लीसा निकालने वालों को कम मेहनत पर अधिक मेहनताना मिलेगा।
इस संबंध में मध्य पिंडर रेंज थराली के वन क्षेत्राधिकारी गोपल सिंह बिष्ट ने बताया कि बोर होल पद्वति से बढ़ी आसानी के साथ पेड़ से काफी कम मेहनत, बिना हाथों, कपड़ों को खराब किए ही अच्छी मात्रा में लीसा निकाला जा सकता हैं। बताया कि वन विभाग के द्वारा अब तक किए गए प्रयोगों के परिणाम काफी बेहतर आए हैं।
उन्होंने बताया कि चमोली जिले में भी इस पद्धति से लीसा निकालने की शुरुआत की जा रही हैं। इसके तहत रेंज अधिकारी के द्वारा रेंज के वन अधिकारियों एवं कर्मचारियों को पिंडर पार 11 के कम्पार्ड नम्बर 4 लीसा डिपो राड़ीबगड़ के जंगल में इस पद्वति का प्रशिक्षण देते हुए लीसा निकालने के दौरान बरती जाने वाली सावधानियों, पेड़ को बिना नुकसान पहुंचाए अधिक उत्पादन प्राप्त करने आदि की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि दूसरे चरण में वन पंचायतों को इस विधि की जानकारी दी जाएगी। बताया कि अकेले थराली लीसा डीपो में थराली एवं देवाल रेंज का साल भर में करीब 45 हजार टिन यानी करीब 7650 कुंतल लीसे का उत्पादन होता हैं। नई पद्धति अपनाने से लीसा का उत्पादन बढ़ने की काफी संभावनाएं हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here