जल संकट के साय में उत्तराखंड, 1200 जलस्रोतों पर सूखने का खतरा

देहरादून। उत्तराखंड विभिन्न नदियों का उद्गम स्थल है। एक सर्वे के मुताबिक उत्तराखंड में 90 फीसद पीने के पानी की सप्लाई प्राकृतिक झरनों या पानी के छोटे-छोटे स्रोतों से होती है। इन पर ही प्रदेश की अधिकतर पेयजल पंपिंग योजनाएं बनाई गई हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से पर्वतीय इलाके पीने के पानी के संकट से जूझ रहे हैं। गर्मियों के सीजन में हर साल पर्वतीय क्षेत्रों के लोगों को जल संकट से गुजरना पड़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों में जिस तरीके से पेडों का अंधाधुंध तरीके से कटान हुआ है और जलवायु परिवर्तन के कारण पहाड़ी क्षेत्रों में गर्मी बढ़ी है, उससे प्राकृतिक जल स्रोतों में पानी कम हो रहा है। कई जल स्रोत पूरी तरह सूख गए हैं।
राज्य गठन के बाद उत्तराखंड के प्राकृतिक जलस्रोतों से पानी की निकासी में पांच से लेकर 80 फीसदी तक की गिरावट आई है। राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के तीन साल से चल रहे अध्ययन में करीब 1200 से अधिक जलस्रोतों के परीक्षण के बाद यह तथ्य सामने आया है। बता दें कि सूबे में 19 हजार 500 जलस्रोतों में से 17 हजार जलस्रोतों में 50 से 90 फीसद तक पानी कम हो गया है और गर्मियों में हालात और भी ज्यादा बद्तर हो गए हैं। स्रोतों में पानी कम होने से भविष्य में पर्वतीय इलाकों में जल संकट बढ़ने की पूरी आशंका है। एक सर्वे के मुताबिक गढ़वाल मंडल में पेयजल स्रोतों की स्थिति कुमाऊं मंडल के मुकाबले सबसे ज्यादा खराब है। पर्यावरण वैज्ञानिकों के विभिन्न दलों के सर्वेक्षण के अनुसार पहाड़ों में जल संकट की स्थिति तेजी से सूखते प्राकृतिक जल स्रोतों के कारण पैदा हुई है। जिसकी वजह भूमि के उपयोग में परिवर्तन, पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण करते हुए मलबे का जल स्रोतों पर गिरना, सड़कों का चौड़ीकरण है। वहीं उत्तराखंड में पर्वतीय क्षेत्रों में भूकंप के कारण 20 से 30 किलोमीटर क्षेत्र में पानी को रोकने और प्रभावित करने वाली एक्वाफिर रॉक में स्थायी या अस्थायी परिवर्तन होने से जलस्रोतों पर भारी प्रभाव पड़ रहा है। इससे जलस्तर गिर रहा है और कई प्राकृतिक जल स्रोत सूख गए हैं। इसके अलावा पानी की गुणवत्ता पर भी असर पड़ रहा है। गुणवत्ता खराब हुई तो लोगों में कई तरह की बीमारियां फैलने का भी डर है। इसलिए पानी की गुणवत्ता और जांच के प्रति भी लोगों को जागरूक करना बेहद जरूरी है।
सर्वे के मुताबिक जल स्रोत के सूखने को मुख्य कारण पहड़ों पर बनाए गए डैम है। टिहरी बांध बनने से आसपास के उन गांवों के जल स्रोत झील में डूब गए हैं जिन गांवों के लोग अभी झील के ऊपरी क्षेत्रों में रह रहे हैं। खासकर बांध के पूर्वी क्षेत्र में स्थित प्रतापनगर ब्लॉक के गांवों के जल स्रोत टिहरी बांध बनने से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। यही हालात पौड़ी गढ़वाल के श्रीनगर क्षेत्र में धारी देवी बांध बनने से पैदा हुए हैं। इस क्षेत्र में कई जल स्रोत धारी देवी बांध में समाहित हो गए हैं। इससे इस क्षेत्र के लोग पीने के पानी के संकट से गुजर रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here