उत्तराखंड : विधानसभा में बैकडोर भर्ती घोटालों को लेकर हाईकोर्ट गंभीर

  • इस बाबत देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर की जनहित याचिका का हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान

देहरादून। विधानसभा भर्ती में बैक डोर से अपने चहेतों को नौकरी देने वाले ताकतवर नेताओं से सरकारी धन की रिकवरी हेतु देहरादून निवासी सामाजिक कार्यकर्ता अभिनव थापर ने हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिका दायर की है। जिसका हाईकोर्ट ने गंभीरता से संज्ञान लेते हुए सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है
याचिकाकर्ता अभिनव ने हाईकोर्ट के समक्ष अपनी याचिका में बताया कि सरकार के 2003 के शासनादेश, जिसमें तदर्थ नियुक्ति पर रोक, संविधान की आर्टिकल 14, 16 व 187 का उल्लंघन और जिसमें हर नागरिक को नौकरियों के समान अधिकार व नियमानुसार भर्ती का प्रावधान है ओर उत्तर प्रदेश विधानसभा की 1974 व उत्तराखंड विधानसभा की 2011 नियमावलियों का उल्लंघन किया गया है।
अभिनव ने बताया, याचिका में मांग की गई है कि राज्य निर्माण के वर्ष 2000 से लेकर 2022 तक समस्त नियुक्तियों की जांच हाईकोर्ट के सिटिंग जज की निगरानी में किया जाए और भ्रष्टाचारियों से सरकारी धन की लूट को वसूला जाये। सरकार ने अपने करीबियों को नियमों को दरकिनार करते हुए नौकरियां दी है। जिससे प्रदेश के लाखों बेरोजगार व शिक्षित युवाओं के साथ धोखा किया गया है। यह सरकारों द्वारा जघन्य किस्म का भ्रष्टाचार है और वर्तमान सरकार भी दोषियों पर कोई कार्रवाई करती दिख नहीं रही है।
हाईकोर्ट के अधिवक्ता अभिजय नेगी ने बताया कि हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश वाली पीठ ने विधानसभा बैकडोर नियुक्तियों में हुई अनियमितता व भ्रष्टाचार को लेकर अभिनव थापर की इस याचिका का संज्ञान ले लिया है और सरकार को नोटिस जारी कर अपना पक्ष रखने का आदेश दिया है। उल्लेखनीय है कि देहरादून निवासी अभिनव थापर ने पूर्व में भी उत्तराखंड में पहाड़ में स्वास्थ्य सुविधाओं, राज्य के राजस्व हेतु टीएचडीसी में 100% शेयर, उत्तराखंड के मूल निवासियों के 70% रोजगार, कोरोना काल में निजी अस्पतालों की लूट की रकम वापसी हेतु कई विषयों पर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट नैनीताल में जनहित याचिकायें दाखिल कर रखी हैं।
गौरतलब है कि सोशल मीडिया, समाचार पत्रों व मीडिया के माध्यम से उत्तराखंड में विधानसभा बैकडोर भर्ती में भ्रष्टाचार का मामला प्रकाश में आया। हालांकि इस पर धामी सरकार ने एक जांच समिति बनाकर 2016 से भर्तियों को निरस्त कर दिया। किंतु यह घोटाला 2000 में राज्य बनने से चल रहा था। जिसकी सभी सरकारों ने अनदेखी की। अपने करीबियों को बैक डोर से नौकरी लगाने में शामिल सभी विधानसभा अध्यक्षों और मुख्यमंत्रियों पर भी सरकार ने चुप्पी साधी हुई है।

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