उत्तराखंड : उत्तराखंड में ज़ोन को लेकर हाईकोर्ट ने दिया बड़ा फैसला

  • कहा ‘रेड जोन से आने वाले प्रवासियों को बॉर्डर पर किया जाए क्वारंटीन’
  • प्रवासियों के विरोध के पीछे बड़ी वजह गांवों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव
  • ग्राम प्रधानों को ही कार्रवाई करने का अधिकार देना भी पड़ रहा भारी

नैनीताल। आज बुधवार को अन्य राज्यों से आ रहे प्रवासी उत्तराखंडियों को लेकर सरकार की व्यवस्था को बदलते हुए बड़ा आदेश दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि रेड जोन से आने वाले प्रत्येक प्रवासी को आवश्यक रूप से बॉर्डर पर ही संस्थागत क्वारंटीन किया जाए। इसके साथ ही उनका कोरोना टेस्ट भी किया जाए। रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही उन्हें घर भेजा जाए।
उधर प्रवासियों को प्रदेश में कई जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है हजार मुश्किलों का सामना कर वापस लौट रहे प्रवासियों को प्रदेश में अगर कई जगह विरोध का सामना करना पड़ रहा है तो इसके पीछे कोरोना संक्रमण को लेकर उपजा डर ही है। गांवों के स्तर पर सुविधाओं का अभाव भी इस डर को बढ़ा रहा है।
लॉकडाउन शुरू होने के साथ ही सोशल मीडिया में ठेठ गढ़वाली में ऐसे वीडियो तैरने लगे थे। जिनमें महिलाएं प्रवासियों को वापस न आने की हिदायत दे रहीं थी। इसके बाद कोरोना को लेकर सरकार ने सोशल डिस्टेंसिंग का फार्मूला दिया।
विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराने के लिए कानून के डर का भी सहारा लिया गया। प्रदेश में ग्राम प्रधानों को कहना न मानने वालों के खिलाफ कार्रवाई का अधिकार देने की घोषणा कर सरकार ने इसी डर को हवा दी। ऐसे में अब गांवों में भी कोरोना संक्रमण को लेकर डर है। एक ग्राम प्रधान के मुताबिक बाहर से आने वाले किस व्यक्ति को कोरोना है और किसको नहीं, इसकी जांच की पुख्ता व्यवस्था नहीं है। ऐसे में गांव वाले हर आने वाले को भी शक की निगाह से देख रहे हैं।गांवों में सुविधाओं का न होना भी इस डर को बढ़ा रहा है।
पंचायत अधिकार मंच के संयोजक जोत सिंह बिष्ट के मुताबिक गांव और शहर के फर्क को समझना चाहिए। गांव में नहाने और अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए हर व्यक्ति के लिए अलग व्यवस्था नहीं होती। एक ही स्नान घर का उपयोग पूरा परिवार करता है। ऐसे में किसी को होम क्वारंटाइन किया भी जाए तो पूरे परिवार पर संक्रमण का खतरा रहता है। दूसरा गांव में सामुदायिक स्तर पर क्वांरटीन करने के लिए भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। कई जगह पंचायत घर कुछ ही लोगों के रहने लायक हैं। कई स्कूलों की हालत पहले से ही खराब हैं। प्रदेश सरकार की ओर से करीब 25 हजार प्रवासियों के संक्रमित होने की आशंका जताए जाने का भी गांवों पर असर पड़ा है। माना जा रहा है कि अधिकतर प्रवासी संक्रमित हैं और उपचार की सुविधा शहरों तक में नहीं हैं तो फिर गांवों की तो बात ही क्या की जाए।
उधर ग्राम प्रधानों से प्रदेश सरकार ने कहा था कि मुख्यमंत्री राहत कोष से दस-दस हजार रुपये दिए जाएंगे। इसी तरह संसदीय कार्यमंत्री ने भी कहा कि ग्राम प्रधानों को पैसा दिया जा रहा है। हालांकि ग्राम प्रधानों का कहना है कि उन्हें अलग से कोई फंड नहीं मिला। ऐसे में प्रधानों को अब गांव के लोगों की नाराजगी का निशाना भी बनना पड़ रहा है। प्रवासियों को इस बात की भी शिकायत है कि प्रधान पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं।

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