उत्तराखंड : ‘किंग मेकर’ पूर्व फौजियों के वोटबैंक में सेंध, कांग्रेस- भाजपा सकते में!

उत्तराखंड का सियासी समर

  • भाजपा के दो बड़े मुद्दों पर कर्नल का दांव खेलकर केजरीवाल ने साधा निशाना
  • ढाई लाख से ज्यादा हैं पूर्व सैनिक, उनके परिवारों में औसतन पांच वोटर

देहरादून। वीरों की भूमि और सैन्य बाहुल्य उत्तराखंड में अगले विधानसभा चुनाव के लिए सियासी दलों के बीच सैनिकों व पूर्व सैनिकों के वोटबेंक को हथियान के लिए अभी से होड़ मचनी शुरू हो गई है। ‘किंगमेकर’ पूर्व सैनिक परिवारों से जुड़े करीब साढ़े 12 लाख वोटरों को रिझाने के लिए सभी पार्टियां अपने-अपने तरीके से चाल चल रही हैं। अब केजरीवाल के कर्नल कौठियाल पर दांव लगाने से भाजपा और कांग्रेस में हलचल मच गई है। भाजपा के बाद अब कांग्रेस भी पूर्व सैनिकों के वोटों को साधने के लिए सियासी दांव चल सकती है। 
हालांकि भाजपा ने कर्नल कोठियाल की आहट के चलते पहले ही उत्तराखंड में नैनीताल-ऊधमसिंह नगर के सांसद अजय भट्ट को केंद्र में रक्षा राज्यमंत्री की जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके साथ ही मंत्री अजय भट्ट भी पूर्व सैनिकों से बातचीत आगे बढ़ाने में जुट गए हैं। मंत्री बनने के बाद से वह लगातार पूर्व सैनिकों के संपर्क में नजर आ रहे हैं। सोमवार को निकाली गई जन आशीर्वाद यात्रा में भी कई पूर्व सैनिक शामिल हुए। दून में यात्रा के दौरान रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट पूर्व फौजी अफसरों के रात्रिभोज में शामिल हुए।
भाजपा के हलकों में इस डिनर डिप्लोमेसी की चर्चा रही। सैनिक कल्याण मंत्री गणेश जोशी इस भोज के सूत्रधार बने। सियासी जानकारों का मानना है कि सेना, सैनिक व पूर्व फौजी भाजपा का सबसे बड़ा फोकस है। यही वजह है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के उत्तराखंड दौरे में पूर्व सैनिकों का एक अलग कार्यक्रम रखा गया है।   
अब आम आदमी पार्टी ने कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल पर दांव खेलकर सैन्य बहुल उत्तराखंड में फौजी वोट बैंक पर सेंध लगाने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कर्नल (सेवानिवृत्त) अजय कोठियाल को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित कर खलबली मचा दी। सियासी पंडितों का कहना है कि कांग्रेस भी बहुत जल्द पूर्व फौजियों को रिझाने के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकती है। 
गौरतलब है कि प्रदेश में पूर्व सैनिकों की संख्या ढाई लाख से ज्यादा है। माना जाता है कि हर पूर्व सैनिक के परिवार में औसतन पांच वोटर हैं। इसलिए साढ़े 12 लाख से ज्यादा वोटरों पर सभी की निगाहें हैं। वर्तमान फौजियों के परिवार भी बड़ी संख्या में उत्तराखंड में रहते हैं। पूर्व फौजी उनके भी मतों पर असर डालते हैं। कई परिवार ऐसे भी हैं जिनमें पूर्व के साथ ही वर्तमान फौजी भी हैं। विधानसभा चुनावों में ये वोट कई सीटों पर हार-जीत का फैसला भी करते हैं। पूर्व में भी पार्टियों के बीच इन वोटरों को लेकर खींचतान रही है। भाजपा इन वोटों पर ज्यादा सेंध लगाती है। इस बार भी राजनीतिक पार्टियां इस होड़ में जुट गई हैं।
भाजपा के पूर्व सैनिक और हिंदुत्व के एजेंडों पर आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने चोट करने का प्रयास किया है। एक ओर जहां उन्होंने हिंदुओं के लिए उत्तराखंड को आध्यात्मिक राजधानी बनाने की घोषणा कर हिंदुत्व के एजेंडे पर चोट की है तो दूसरी ओर पूर्व सैनिकों के वोट बैंक को लेकर उन्होंने कर्नल को सीएम पद का उम्मीदवार घोषित किया है। 
आप के सीएम पद के चेहरे कर्नल (सेनि) अजय कोठियाल ने कहा कि सैन्य बहुल हमारे प्रदेश में बड़ी संख्या पूर्व सैनिक और उनके परिवार की है। आज भी उनकी कई समस्याएं जस की तस बनी हुई हैं। हमें मौका मिलेगा तो उनकी समस्याओं के समाधान सर्वोच्च प्राथमिकता पर किए जाएंगे।
केंद्रीय रक्षा राज्यमंत्री अजय भट्ट ने कहा कि हर पार्टी की अपनी रणनीति होती है। भाजपा की अपनी रणनीति है। सैनिकों और सैन्य परिवारों के लिए भाजपा ने कई कल्याणकारी फैसले लिए। वन रैंक वन पेंशन का मामला भाजपा ने हल किया। भाजपा सर्वस्पर्शी और सर्वमान्य पार्टी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के नारे को चरितार्थ किया है। इससे साफ दिख रहा है कि उत्तराखंड की जनता 2022 में भाजपा को एक बार फिर सेवा का अवसर देने जा रही है।
दिलचस्प बात यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक दल ने आगामी विधानसभा चुनावों में भाजपा से मोदी के पोस्टर तक न अपील की है और इसी क्रम में यूपी का चुनाव योगी आदित्यनाथ के चेहरे को आगे कर दांव लगाने की तैयारी है। जबकि उत्तराखंड में हालात जुदा है क्योंकि इस समय भाजपा में कई कद्दावर नेता वो हैं जो कांग्रेस छोड़कर भाजपाई हो गये हैं। हालांकि भाजपा का अब तक का इतिहास बताता है कि दलबदलुओं को सीएम पद थमाने से परहेज ही किया जाता रहा है। ऐसे में उत्तराखंड के लिये भाजपा में सर्वमान्य चेहरा तलाशना टेढ़ी खीर बना हुआ है।  

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