उत्तराखंड : मानसून ‘उतरेगा’ तो चढ़ेगी ‘तीसरी लहर’!

वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. एनएस बिष्ट

पहले ही जाग जाओ

  • टीकाकरण, टेस्टिंग के इतर तीसरी लहर रोकने के  डॉ. एनएस बिष्ट के दिये टिप्स
  • उत्तराखंड में भी कोरोना की तीसरी ‘लहर’ आने की की स्थिति बनने के आसार

देहरादून। वरिष्ठ फिजिशियन डॉ. एनएस बिष्ट का मानना है कि हवा की आर्द्रता (नमी), जनसंख्या घनत्व (भीड़भाड़) और कोरोना के नये उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) पर कोरोना संक्रमण की रफ्तार या लहर निर्भर करेगी। एक चौथा कारक यह भी है कि जांच या परीक्षण की दर कितनी तेज है। हालांकि यह सच है कि ज्यादातर राज्यों में परीक्षण की रफ्तार कम हुई है, भले ही संक्रमण की दर में कमी आई हो।
उन्होंने बताया कि दूसरी तरफ देश के आधे से अधिक कोरोना के रोगी केरल और महाराष्ट्र में मिल रहे है तो एक कारण यह भी है कि इन दो राज्यों में परीक्षण की ऊंची दर बनी हुई है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि वायु में आर्द्रता बड़ने के साथ वायरस का बाहरी आवरण कमजोर पड़ जाता है। ऐसे में ऐरोसाॅल या वायुकणों पर आधारित संक्रमण में कमी आना तय है, लेकिन मानसून से बढ़ी नमी का यह लाभ तभी तक है  जब तक भीड़भाड़ कम है। जैसे ही जनसंख्या घनत्व बढ़ता है, वैसे ही बलगम की बूंदों पर आधारित संक्रमण में तेजी आने लगती है। बलगम की बूंदें हवा में बढ़ी नमी की वजह से भवनों के अन्दर ज्यादा देर तक टिकती हैं और यही कोरोना संक्रमण का कारण बनते हैं।
डॉ. एनएस बिष्ट ने बताया कि महाराष्ट्र के कई जिलों का जनसंख्या घनत्व औसत से ज्यादा है। यही हाल केरल का भी है। क्योंकि केरल के कुल क्षेत्रफल में वन-भूमि ही अधिक है। यही कारण है कि मानसून में वायरस के कमजोर पड़ने के बावजूद केरल और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में अधिक जनसंख्या घनत्व की वजह से संक्रमण में तेजी बनी हुई है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या घनत्व, वायु-आर्द्रता, वायरस का प्रकार, परीक्षणों की दर के अलावा एक पांचवा कारक भी कोरोना संक्रमण के विज्ञान से जुड़ा हुआ है। वह है टीकाकरण का प्रतिशत। भारत जैसे विशालकाय देश में यह कारक सबसे महत्वपूर्ण साबित होने वाला है। जहां दोनों खुराक सिर्फ 5.5 प्रतिशत को ही मिल पायी है। पहली खुराक के 23 प्रतिशत का आंकड़ा भी जोड़ें तो लगभग 28.5 प्रतिशत लोग ही टीकाकरण के दायरे में हैं। 70 प्रतिशत से अधिक लोगों की पहुंच अभी भी टीके से दूर है। ऐसे में मानसून के धीमा पड़ते ही जब हवा सूखी और ठंडी होगी तो वायुकणों से होने वाले संक्रमण की दर बढ़ जायेगी। उसके ऊपर यदि नये प्रकार का वायरस भी पनपता है तो तीसरी लहर आने में देर नहीं लगेगी।
उन्होंने कहा कि टेस्टिंग या परीक्षण की दर में कमी आना और भी चिंताजनक है क्योंकि सामान्य जीवन और रोजगार को सुचारु करने की जरूरत के बीच भीड़भाड़ वाली जगहों से संक्रमण की लहर बनने का जोखिम भी है। कुछ जगहों पर अनिवार्य कोरोना परीक्षण असुविधाजनक तो है, लेकिन तीसरी लहर को रोकने के लिए जरूरी है। अस्पताल, माॅल, सामाजिक समारोह के स्थल, घनी बस्तियां संक्रमण के केन्द्र बन  सकते हैं। दूसरी लहर की भयावहता के बाद भी लोगों द्वारा कोविड नियमों का पालन न करना चौंकाने वाला तो है, लेकिन जागरूकता के माध्यमों का लगातार सक्रिय रहना भी जरूरी है। ऐसे में टेस्टिंग या परीक्षण की रफ्तार बढ़ाना ही एकमात्र जरिया है।
डॉ. एनएस बिष्ट ने बताया कि वैक्सीनेशन और कैसे द्रुतगति के साथ आगे बढ़ै, यह भी नीति नियामकों को सोचना होगा। लक्षित समूहों की टेस्टिंग के साथ-साथ 18-45 वर्ष में विशेष लोगों के टीकाकरण को वरीयता दी जाये। जैसे-  ठेले वाले, दुकानदार, दूध वाले, ऑटो और टैक्सी ड्राइवर, होटलो, रेस्तराओं के कर्मचारी, बैंक, सचिवालयकर्मी और खाना तथा सामान की डिलीवरी करने वाले लोग। वैक्सीन का इस तरह कम संसाधनों वाले लोगों को वरीयता देने से तीसरी लहर पर सकारात्मक असर पड़ सकता है।

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