देहरादून। विधानसभा चुनाव को देखते हुए उत्तराखंड क्रांति दल एक बार फिर अपनी पहचान प्रदेश के क्षेत्रीय दल के रूप में स्थापित करने की मशक्कत में जुट गया है। इसके लिए दल इस बार सख्त भू-कानून, राजधानी गैरसैंण, पलायन, रोजगार व स्वास्थ्य सेवाओं के मुद्दों को लेकर जनता के बीच जाने की तैयारी कर रहा है। इन सभी मुद्दों को उक्रांद अपने घोषणा पत्र में भी शामिल करेगा। दल का घोषणापत्र 20 दिसंबर तक जारी करने की भी तैयारी है। इसके साथ ही प्रत्याशियों की पहली सूची भी जारी की जाएगी।
उत्तराखंड में क्षेत्रीय सरोकारों की राजनीति करने वाली पार्टियां सत्ता का ताला नहीं खोल पाई। दल के सामने सबसे बड़ी चुनौती जनता का खोया विश्वास वापस हासिल करने की है। पहाड़ के जनमानस को राज्य आंदोलन का नेतृत्व करने वाली उत्तराखंड क्रांति दल से बहुत उम्मीदें थीं। लेकिन राज्य में अब तक हुए चार विधानसभा चुनावों का इतिहास बताता है कि जहां उत्तरप्रदेश में क्षेत्रीय राजनीतिक दल सत्ता पर काबिज होने में कामयाब रहे, वहीं जन भावनाओं और संभावनाओं के बावजूद क्षेत्रीय दल मुरझाते चले गए
अभी अधूरा है अपना राज्य, अपनी सरकार का सपना…
कुमाऊं विवि के पूर्व कुलपति डॉ. डीडी पंत ने 26 जुलाई 1979 को जब उत्तराखंड क्रांति दल(यूकेडी) की स्थापना की। तब यही सपना था कि भौगोलिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों से एकदम भिन्न उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र के जनसरोकारों के लिए यूकेडी अलग राज्य की लड़ाई का नेतृत्व करेगी। अपना राज्य होगा और अपनी सरकार बनेगी।
वहीं, उत्तरप्रदेश के समय से ही काशी सिंह ऐरी उत्तराखंड क्रांति दल की संभावनाओं की उम्मीद जगाते रहे। वह डीडीहाट विधानसभा सीट से 1985 से 1996 तक तीन बार विधायक रहे। उत्तराखंड राज्य गठन के बाद 2002 ऐरी फिर विधानसभा पहुंचे।
उक्रांद नहीं बन पाया विकल्प…
उत्तराखंड को अलग राज्य बनाने की अवधारणा के साथ उत्तराखंड क्रांति दल अस्तित्व में आया था। राज्य आंदोलन में उक्रांद की खासी महती भूमिका रही। यही कारण रहा कि राज्य गठन के बाद उक्रांद मजबूत राजनीतिक दल के रूप में जनता के बीच खड़ा था। इसका असर पहले विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। वर्ष 2002 में उक्रांद ने गैर मान्यता प्राप्त पंजीकृत दल के रूप में चुनाव लड़ा। दल ने इस चुनाव में 62 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे। जनता ने उक्रांद को पूरा सहयोग दिया। दल को कुल 5.49 प्रतिशत वोट के साथ ही चार सीटों पर जीत भी हासिल हुई। इसी वोट प्रतिशत के आधार पर उक्रांद को राज्य स्तरीय राजनैतिक दल के रूप में मान्यता मिली और वह प्रदेश का पहला क्षेत्रीय राजनैतिक दल बन गया। वर्ष 2007 के दूसरे विधानसभा चुनाव में उक्रांद का मत प्रतिशत यथावत, यानी 5.49 प्रतिशत रहा, लेकिन दल को केवल तीन ही सीट पर जीत मिली। उक्रांद चुनाव के बाद भाजपा को समर्थन देकर सरकार में शामिल हो गया। उसके दो विधायक मंत्री बने। इसे उक्रांद के लिए एक बड़े अवसर के रूप में देखा गया। लेकिन अफसोस यह कि उक्रांद सत्ता से मिली ताकत को नहीं संभाल पाया। दल मजबूत होने के बजाय आपसी कलह के कारण कमजोर हुआ और कई धड़ों में बंट गया। भाजपा और कांग्रेस के दबदबे और यूकेडी की आपसी लड़ाई के चलते राज्य में उत्तराखंड रक्षा मोर्चा का उदय हुआ। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी, उत्तराखंड जनवादी पार्टी ने चुनाव में भाग्य अजमाया। यूकेडी के विकल्प के तौर पर रक्षा मोर्चा ने भी चुनाव में ताल भी ठोकी। लेकिन इन सबके हाथ कुछ हाथ नहीं लगा। जनता ने इस क्षेत्रीय दल को दरकिनार कर दिया। दल के शीर्ष नेता पूर्व सांसद टीपीएस ने दल को आप में विलय कर दिया। इस बीच उक्रांद भी दो हिस्सों में बंट गया। सत्ता से बाहर होने के बाद उक्रांद के नेताओं को एक बार फिर दल की याद आई। अब दल के तकरीबन सभी गुट एक हो गए हैं। ऐसे में अब वे पूरी ताकत के साथ एक बार फिर क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर चुनाव में उतरने की तैयारी में जुटे हुए हैं।