अब फिर ‘खिसियानी बिल्ली’ बने त्रिवेंद्र विरोधी!

उत्तराखंड में सीएम बदलने का “रागदरबारी” चालू आहे

  • हरियाणा से लौटे सुरेश भट्ट को उत्तराखंड के सीएम के रूप में प्रस्तुत कर रही विरोधी लॉबी फिर हुई मायूस
  • खंडूड़ी पार्ट-2 से मिले कड़वे सबक को फिर दोहराने के मूड में बिल्कुल नहीं दिख रहा भाजपा आलाकमान
  • त्रिवेंद्र के विकल्प के रूप में भी खूब उछाले गये पंत, बलूनी, अजय भट्ट-सतपाल महाराज के नाम

देहरादून। उत्तराखंड की सियासत भी अजीब है। शुरू से लेकर अब तक यहां मुख्यमंत्री ताश के पत्तों की तरह फेंटे गये हैं। कांग्रेस हो या भाजपा, दोनों राष्ट्रीय दलों में जबरदस्त गुटबाजी के चलते यहां मुख्यमंत्री को बदलना ही सबसे बड़ा ‘विकास’ माना जाता रहा है। इसके लिये विरोधी लॉबी कभी अपनी ‘बंदूक’ चलाने के लिये कभी किसी उपयुक्त कंधे को तलाशती है तो कभी किसी ‘शिखंडी’ को सामने खड़ाकर तीर चलाती रही है। अपने कार्यकाल का चौथा वर्ष सफलतापूर्वक पूरा करने जा रहे मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत भी शुरू से ही इस लॉबी के निशाने पर रहे हैं। वो बात अलग है कि यह ‘बहुमुखी’ ताकतवर लॉबी बार बार खिसियानी बिल्ली की तरह खंभा नोंचती नजर आती है।
इसका ताजातरीन उदाहरण हरियाणा में प्रदेश महामंत्री रहे सुरेश भट्ट का वहां से बकायदा विदाई लेकर उत्तराखंड लौटकर आना है। त्रिवेंद्र विरोधी लॉबी ने इस खबर को हाथोंहाथ लिया और उसे तुरंत हवा देते हुए इस तरह से पेश किया कि अब मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की ‘विदाई’ का समय आ गया है और सुरेश के उत्तराखंड पहुंचते ही रेड कार्पेट बिछाकर उनको सीएम की कुर्सी पर आसीन करा दिया जाएगा। सोशल मीडिया पर तो उससे आगे की योजना का खाका प्रस्तुत कर दिया गया था और भट्ट के आलाकमान से ‘संबंधों’ का हवाला देकर कुछ इस तरह की खबरें उड़ाई जा रही थीं कि वह त्रिवेंद्र के ‘उचित और पर्याप्त’ विकल्प साबित होंगे। आज उनके उत्तराखंड भाजपा के महामंत्री बनाये की घोषणा से विरोधी लॉबी के सीने पर फिर सांप लौट रहे हैं। पीत पत्रकारिता के ‘शिरोमणि’ पत्रकारों ने पिछले कुछ हफ्तों से सोशल मीडिया में भट्ट को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी।  
हालांकि भाजपा आलाकमान भी वर्ष 2011 के इतिहास को दोहराने के मूड में नहीं है। वह भाजपा की अंदरूनी सियासत का उथल पुथल वाला दौर था। भुवन चंद्र खंडूड़ी को अचानक फिर से डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक की जगह मुख्यमंत्री बना दिया गया था। जिसका मकसद 2012 का विधानसभा चुनाव फतह करना था, लेकिन भाजपा की यह योजना बुरी तरह धराशायी हो गई और ‘खंडूरी है जरूरी’ के नारे के साथ उन्हें बतौर सीएम पेश करना गलत साबित हुआ। कोटद्वार से चुनाव मैदान में उतरे खंडूड़ी को मात खानी पड़ी और उन्हीं के हार जाने से केवल एक सीट ज्यादा आने से कांग्रेस के खाते में मुख्यमंत्री की कुर्सी आ गयी।  
अब चुनाव सिर पर हैं और कुंभ मेला भी। ऐसे में भाजपा आलाकमान भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की छवि वाले त्रिवेंद्र को हटाकर इतिहास को दोहराने के मूड में नहीं है।
मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत हटाओ मुहिम से जुड़ी भाजपा की ही विरोधी लॉबी ने बार बार ऐसी अफवाहों को खूब हवा दी कि सरकार के मुखिया में बदलाव तय है। वो अब गये, तब गये और उनकी जगह बस ये … जनाब लेने वाले हैं। पहले प्रकाश पंत, फिर अजय भट्ट, अनिल बलूनी और सतपाल महाराज को वह ‘सीएम’ बनाकर पेश कर चुकी है। भट्ट का नाम इस कदर अचानक तेज हवा की मानिंद चल पड़ा था कि तमाम सियासतदां भी ताज्जुब में थे। अब भट्ट को लेकर बनाया गया विरोधी लॉबी का यह ‘रेत के महल’ भी भरभराकर ढह चुका है।
वैसे देखा जाए तो वर्ष 2011 और वर्ष 2020 के सियासती समीकरणों में धरती आसमान का फर्क है। अब अगले महीने से हरिद्वार कुम्भ मेला शुरू हो जाएगा। इसके बाद सरकार का पूरा ध्यान इसके सफल और निर्बाध ही नहीं शानदार आयोजन पर रहेगा। अगले विधानसभा चुनाव में कुम्भ मेले का आयोजन भी मुद्दा रहेगा। ऐसे में भाजपा आलाकमान कोई आत्मघाती कदम उठाने से पहले सौ बार सोचेगा।  

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