उत्तराखंड : पहले बेदाग सीएम होने का इतिहास रच गये त्रिवेंद्र!

सियासत की शतरंज

  • उत्तराखंड में सियासी उठापटक के बीच मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के निकाले जा रहे निहितार्थ
  • देवभूमि के अति महत्वाकांक्षी नेताओं ने भाजपा आलाकमान पर दबाव बनाकर दिलाया त्यागपत्र

देहरादून। उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण में विधानसभा सत्र के दौरान मुख्यमंत्री बदलने की चर्चाओं पर आज मंगलवार को विराम लग गया और सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस्तीफा देने के बाद संक्षिप्त प्रेस वार्ता में भाजपा संगठन और आलाकमान का तहे दिल से आभार जताया और मुस्कुराते हुए अपने इस्तीफे दिये जाने की घोषणा की। पत्रकारों द्वारा ‘कारण’ पूछे जाने पर त्रिवेंद्र ने पार्टी आलाकमान से संपर्क करने की सलाह देते हुए प्रेस वार्ता का समापन किया। अगर उत्तराखंड के सियासी इतिहास पर नजर डाली जाये तो अकेले त्रिवेंद्र सिंह रावत ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे जो सियासत की ‘काजल की कोठरी’ से बेदाग बाहर निकलकर आये हैं। उनकी ईमानदारी और कार्यशैली की सराहना उनके धुर विरोधी, यहां तक कि कांग्रेस के धुरंधर नेता हरीश रावत, इंदिरा हृदयेश और प्रीतम सिंह भी कई बार सार्वजनिक मंच पर कर चुके हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2000 में अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया उत्तराखंड राज्य अपने 20 साल पूरे कर चुका है और इन 20 सालों में राज्य को 10 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं। इन मुख्यमंत्रियों में से कुछ ऐसे नाम भी हैं जो एक से ज्यादा बार मुख्यमंत्री बन चुके हैं। इनमें भुवन चंद्र खंडूरी और हरीश रावत के नाम शामिल हैं। सबसे पहले 09 नवंबर 2000 को नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बने। नित्यानंद स्वामी अपना कार्यकाल 29 नवंबर 2001 तक ही पूरा कर पाये। विडंबना यह रही कि भाजपा नेताओं की अति महत्वाकांक्षा और एक दूसरे की टांग खींचने की प्रवृत्ति के चले पार्टी का एक भी मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया। इसी के चलते नित्यानंद स्वामी एक साल भी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नहीं रह पाए। उसके बाद 30 अक्टूबर 2001 भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। भगत सिंह कोश्यारी का कार्यकाल भी महज 122 दिन का ही रहा।


उसके बाद नारायण दत्त तिवारी दो मार्च 2002 से सात मार्च 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। अब तक के सियासी सफर में सिर्फ तिवारी ही ऐसे मुख्यमंत्री रहे जिन्होंने तमाम झंझावतों के बीच अपने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। इनके बाद 07 मार्च 2007 में भाजपा की ओर से भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बनाया गया। खंडूरी का कार्यकाल महज दो साल चार महीने के करीब ही चला। उसके बाद भाजपा नेतृत्व ने खंडूरी की जगह पर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया। पोखरियाल का कार्यकाल महज सवा दो साल ही चला। उनकी जगह पर वापस भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री बना दिया गया। खंडूरी का यह कार्यकाल महज छह महीने का ही रहा।
वर्ष 2012 में कांग्रेस ने कद्दावर नेता विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया गया। विजय बहुगुणा भी दो साल ही इस पद पर रह पाए। उसके बाद हरीश रावत को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बनाया। दो साल दो महीने तक मुख्यमंत्री बने रहने के बाद उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। 25 दिन के राष्ट्रपति शासन के बाद 21 अप्रैल 2016 को एक बार फिर हरीश महज एक दिन के लिए मुख्यमंत्री बने। उसके बाद 19 दिन का राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। तमाम राजनीतिक उठापटक के बाद हरीश रावत 11 मई 2016 से 18 मार्च 2017 तक फिर मुख्यमंत्री बने।
हरीश रावत के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत मुख्यमंत्री बने। जिन्होंने गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी और तीसरे मंडल के रूप में नई पहचान दी।
उत्तराखंड के इतिहास में देखा जाये तो ‘काजल की कोठरी’ में करीब चार साल रहे त्रिवेंद्र सिंह रावत ही अकेले बेदाग मुख्यमंत्री साबित हुए हैं।
उधर उत्तराखंड में बीते चार दिनों से चले आ रहे कयासों पर मंगलवार शाम विराम लग गया। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शाम करीब चार बजकर बीस मिनट पर राजभवन पहुंचकर राज्यपाल बेबी रानी मोर्य को इस्तीफा सौंप दिया। राजभवन में राज्यपाल को इस्तीफा सौंपने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत सीएम आवास में मीडिया से रूबरू हुए। उन्होंने सबसे पहले अपनी पार्टी का धन्यवाद जताया।
त्रिवेंद्र ने कहा… ‘पार्टी ने चार साल के लिए देवभूमि की सेवा करने का स्वर्णिम मौका दिया, ये मेरा सौभाग्य है। भाजपा में ही यह संभव था कि छोटे से गांव के, सैन्य परिवार के, साधारण से कार्यकर्ता को पार्टी ने इतना बड़ा सम्मान दिया, ये मैंने कभी सोचा तक न था। उन्होंने कहा कि पार्टी ने विचार किया और संयुक्त रूप से यह निर्णय लिया कि मेरी जगह अब किसी और को ये मौका देना चाहिए।’
उन्होंने कहा… ‘मेरे कार्यकाल के चार वर्ष पूरे होने में मात्र नौ दिन कम रह गए। मैं प्रदेशवासियों का भी धन्यवाद देना चाहता हूं। इस दौरान उन्होंने अपने कार्यकाल के मुख्य कार्य गिनाते हुए कहा कि विशेषकर हमने महिलाओं के स्वरोजगार के लिए, बच्चों की शिक्षा के लिए और किसानों की आय दोगुनी करने के लिए बहुत काम किए। पार्टी अगर मुझे ये मौका न देती तो मैं मुख्यमंत्री घस्यिारी कल्याण योजना जैसे कार्य कभी नहीं कर पाता। जिन्हें भी कल मौका मिलेगा वो इन योजनाओं को आगे बढ़ाएंगे। मेरी ओर से उनको शुभकामनाएं।’
मीडिया के नेतृत्व परिवर्तन करने का कारण पूछने पर त्रिवेंद्र ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी में कोई भी फैसला होता है तो सामूहिक विचार के बाद ही होता है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बंशीधर भगत की ओर इशारा कर मीडिया से यह भी कहा कि आज अध्यक्ष जी से बात कीजिए, लेकिन भगत कुछ नहीं बोले। मीडिया के फिर पद से हटाने का कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि इस सवाल के और अच्छे जवाब के लिए दिल्ली जाना होगा। त्रिवेंद्र ने यह भी जानकारी दी कि कल पार्टी मुख्यालय पर 10 बजे पार्टी विधानमंडल दल की बैठक होगी, जिसमें सब विधायक मौजूद होंगे। इसके बाद त्रिवेंद्र कुर्सी से उठ गए और मीडियाकर्मियों को धन्यवाद कहते हुए निकल गए।

संघ के प्रचारक से सीएम तक का त्रिवेंद्र का सफरनामा

– वर्ष 1979 में त्रिवेंद्र सिंह रावत का राजनीतिक सफर शुरू। इसी वर्ष त्रिवेंद्र राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े।
– वर्ष 1981 में संघ के प्रचारक के रूप में काम करने का उन्होंने संकल्प लिया।
– वर्ष 1985 में देहरादून महानगर के प्रचारक बने।
– वर्ष 1993 में वह भाजपा के क्षेत्रीय संगठन मंत्री।
– वर्ष 1997 में भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री बने।
– वर्ष 2002 में फिर भाजपा प्रदेश संगठन महामंत्री बने। 
– वर्ष 2002 में डोईवाला विधानसभा से विजयी हुए। 
– वर्ष 2007 में डोईवाला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से  भाजपा के उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए।
– भाजपा के मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री बने। 
– वर्ष 2017 में डोईवाला विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से   भाजपा के उम्मीदवार के रूप में विजयी हुए।
– 17 मार्च 2017 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री नियुक्त हुए।
– 9 मार्च 2021 को राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को इस्तीफा सौंपा।
– कांग्रेस के नारायण दत्त तिवारी के बाद अब तक सबसे लंबे समय यानी चार साल में नौ दिन कम तक मुख्यमंत्री बने रहे।

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