सियासत के दांव
- चुनाव जीते तो पांच साल भोगेंगे सांसदी का सुख
- और हार भी गये तो 2022 तक रहेगी बादशाहत
देहरादून। इस बार लोकसभा चुनाव में बड़े—बड़े दिग्गजों की साख दांव पर लगी है। कुछ की हालत यह है कि वे हारे तो उनका पॉलीटिकल करियर खत्म हो जाएगा और कुछ पैदल हो जाएंगे। मगर उत्तराखंड में एक प्रत्याशी ऐसे भी हैं जिनके दोनों हाथों में लड्डू हैं। गर वह जीत गये तो पांच साल की सांसदी पक्की और हार भी गये तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि 2022 तक वह राज्यसभा में बतौर सांसद रहेंगे ही। वह प्रत्याशी हैं अल्मोड़ा सुरक्षित से प्रदीप टम्टा।
गौरतलब है कि सोमेश्वर विधानसभा सीट पर एक दूसरे को बारी-बारी से हराने वाले पुराने प्रतिद्वंद्वियों में से एक मौजूदा केंद्रीय कपड़ा राज्यमंत्री अजय टम्टा का सामना राज्यसभा सांसद व अल्मोड़ा के पूर्व सांसद प्रदीप टम्टा से है। वर्ष 2014 में अजय टम्टा भाजपा से लोकसभा चुनाव लड़े थे और कांग्रेस के प्रदीप टम्टा को भारी अंतर से हराया था। खास बात यह भी रही कि वह पहली बार लोकसभा चुनाव जीते और सीधे केंद्र में मंत्री बन गए। उन्हें अब अपने लोकसभा क्षेत्र के लोगों को समझाना होगा कि उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए क्या किया। हो सकता है कि केंद्र और प्रदेश सरकार के विरुद्ध सत्ता विरोधी लहर का सामना भी उन्हें करना पड़ेगा। उन्हें अपनी पार्टी के उन पार्टी विधायकों को भी साथ लेना ही होगा जिन्होंने बागेश्वर विधायक चंदनराम दास के पक्ष में लॉबिंग की थी। इस सीट के मिजाज की बात करें तो अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ लोकसभा क्षेत्र में वर्ष 2014 के लोस चुनाव में जहां भाजपा को 12 तो कांग्रेस को दो विस सीटों पर बढ़त मिली थी। लेकिन वर्ष 2017 के विस चुनाव में कांग्रेस ने एक सीट बढ़ाकर तीन विस क्षेत्रों यानी जागेश्वर, धारचूला और रानीखेत में जीत हासिल कर ली। इस तरह भाजपा केवल 11 में बढ़त पर रह गई।
दूसरी ओर प्रदीप टम्टा को हरीश रावत की उनसे सटी नैनीताल सीट से चुनाव लड़ने का लाभ भी मिलने की संभावना है। वह भी सत्ता विरोधी लहर पर सवारी की कोशिश करेंगे। अजय टम्टा के मुकाबले वह अच्छे वक्ता भी माने जाते हैं और जनांदोलनों में उनकी शिरकत से सभी वाकिफ हैं। लेकिन उनके सामने चुनौती विस चुनाव में हारी 11 सीटों पर दोबारा कांग्रेस को भाजपा से आगे से जाने की है।