गैरसैंण राजधानी मसला : सुप्रीम कोर्ट ने त्रिवेंद्र सरकार के पाली में डाली गेंद!

फिर उछला बीस साल पुराना मुद्दा

  • गैरसैंण को राजधानी घोषित करने का निर्देश देने के मांग की याचिका को किया खारिज
  • इसे उत्तराखंड की राजधानी बनाने से किया इनकार, कहा-ये सरकार का नीतिगत फैसला
  • त्रिवेंद्र ने जनभावनाओं से जुड़े मुद्दे गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने को कहा था

नई दिल्ली/देहरादून। सुप्रीम कोर्ट ने गैरसैंण को उत्तराखंड की राजधानी और प्रताप नगर को नया जिला बनाने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा, यह नीतिगत फैसला है और इसमें न्यायालय कोई निर्देश जारी नहीं कर सकता।
जस्टिस आर भानुमति, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने देहरादून के एक व्यक्ति की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें गैरसैंण को राजधानी घोषित करने का निर्देश देने की मांग की थी। पीठ ने कहा, ये नीतिगत फैसले हैं और इसमें हम कोई निर्देश नहीं दे सकते।
उल्लेखनीय है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने बीते 20 साल के इस भावपूर्ण राजनीतिक मुद्दे को विराम देते हुए गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की घोषणा की थी। इसके लिए गठित दीक्षित आयोग ने अपनी जांच में गैरसैंण को राजधानी बनाने लायक नहीं पाया था। उधर सुप्रीम कोर्ट में गैरसैंण को राजधानी बनाने की याचिका खारिज होने से प्रदेश सरकार भले ही राहत महसूस कर सकती है लेकिन इससे स्थायी राजधानी का सवाल अब और तीखा होकर उभरेगा।
भराड़ीसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अचानक ही गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने का ऐलान कर दिया था। मुख्यमंत्री के इस सियासी पैंतरे से कांग्रेस तक को संभलने का मौका नहीं मिला। दूसरी ओर भाजपा इसमें बढ़त लेती दिखाई दी थी। इस पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने कहा था कि उन्हें इस बात का मलाल रहेगा कि वह गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित नहीं कर पाए।
भाजपा के इस दांव के बाद कांग्रेस ने भी ऐलान किया कि कांग्रेस ग्रीष्मकालीन राजधानी से संतुष्ट नहीं है और वह सत्ता में आते ही गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाएगी। सुप्रीम कोर्ट की ओर से इस मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार करने से कांग्रेस को भी मायूसी मिलेगी। दूसरी ओर कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह का साफ कहना है कि कांग्रेस यह स्पष्ट कर चुकी है कि सत्ता में आते ही वह गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाएगी।
उधर राज्य आंदोलनकारी समिति के केंद्रीय संरक्षक धीरेंद्र प्रताप का कहना है कि आंदोलनकारी पहले से ही स्थायी राजधानी की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश जारी करने से मना किया है। यह नहीं कहा कि स्थायी राजधानी न बनाई जाए। भावनात्मक रूप से लोग गैरसैंण को स्थायी राजधानी के रूप में देखना चाहते हैं। इससे पहले कि गैरसैंण के मामले में सरकार कोई कदम उठाती, कोविड संक्रमण राह में बाधा बन गया। सरकार के स्तर से बाकायदा एक्शन प्लान भी तैयार किया जा रहा था। इसके लिए कमेटी का गठन भी किया गया था।

इन नेताओं ने रखा अपना पक्ष

वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी रविंद्र जुगरान ने कहा कि गैरसैंण राज्य निर्माण की अवधारणा का सवाल और पहाड़ की समस्याओं का निदान है। पहाड़ की विकट समस्याओं से निजात पाने, पलायन रोकने, रोजगार बढ़ाने और संस्कृति के संरक्षण के लिए आंदोलन और शहादतें हुईं तो राज्य मिला। पहाड़ की राजधानी पहाड़ में नहीं होगी तो कहां होगी? न्यायालय का तर्क सही है कि यह नीतिगत मामला है और इसे राज्य सरकार को ही तय करना है। तमाम पर्वतीय राज्य हैं जिनकी राजधानी पहाड़ में हैं। सामरिक लिहाज से भी उत्तराखंड की राजधानी गैरसैंण में होनी चाहिए।
भाकपा नेता इंद्रेश मैखुरी ने कहा कि निस्संदेह राजधानी कोई अदालती सवाल नहीं हो सकता। सर्वोच्च न्यायालय ने उचित कहा कि ये नीतिगत मसला है। इसलिए इसका समाधान राज्य सरकार को करना है। गैरसैंण पहाड़ की जनाकांक्षाओं व जनभावनाओं की प्रतीक है। उसे राजधानी घोषित करना चाहिए। 1994 में रमाशंकर कमेटी से लेकर 2008 के दीक्षित आयोग तक सरकारों ने इस नीतिगत मसले को लटकाए रखा। इस पर निर्णय होना चाहिए।
भाजपा प्रदेश मीडिया प्रभारी अजेंद्र अजय ने कहा कि त्रिवेंद्र सरकार ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया है। सरकार ने इस ऐतिहासिक फैसले से राज्य आंदोलन के शहीदों व राज्य आंदोलनकारियों की भावनाओं का सम्मान किया। सरकार ने गैरसैंण विकसित करने के लिए अवस्थापना विकास और कनेक्टिविटी को लेकर कई योजनाएं शुरू की हैं। धीरे-धीरे गैरसैंण एक नए शहर के तौर पर विकसित होगा। ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन पर कार्य प्रगति पर है। बागेश्वर-कर्णप्रयाग रेल लाइन का सर्वे भी हो रहा है। गैरसैंण का भविष्य उज्ज्वल है।
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष किशोर उपाध्याय ने कहा…’मैं पहले दिन से कह रहा हूं कि एक राज्य की दो राजधानियां नहीं हो सकती। भाजपा सरकार को यह तय करना होगा कि राजधानी देहरादून है या गैरसैंण। भाजपा चाहती तो आज राजधानी की पहेली राज्य बनने के समय ही हल हो जाती। लेकिन केंद्र और राज्य की भाजपा सरकारों ने दो गलत फैसले किए। नैनीताल में हाईकोर्ट और देहरादून को अस्थायी राजधानी बना दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया है तो सरकार को नीतिगत तौर पर स्थायी राजधानी के बारे में अपना स्पष्ट मत साफ कर देना चाहिए।

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