‘बैंकों के दामाद नहीं हैं डिफॉल्टर’!

सुप्रीम कोर्ट की आरबीआई से दो टूक

  • आरटीआई के तहत बैंक डिफॉल्टरों के नामों को सार्वजनिक किया जाए, उन पर पर्दा न डाले 
  • कोर्ट ने बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के कामकाज के इंस्पेक्शन रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने को कहा 
  • आरबीआई को चेतावनी देते हुए कहा, इस आदेश का पालन गंभीरता से करें वरना  अवमानना के केस का करें सामना 

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी देते हुए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) से दो टूक कहा कि ‘सूचना का अधिकार’ (आरटीआई) कानून के तहत बैंक डिफॉल्टर्स के नामों को सार्वजनिक किया जाए। कोर्ट ने बैंकों और वित्तीय संस्थानों के कामकाज के इंस्पेक्शन रिपोर्ट को भी सार्वजनिक करने को कहा है। साथ ही भविष्य में कोर्ट के आदेश के उल्लंघन को लेकर चेतावनी भी दी।
जस्टिस एल नागेश्वर राव और एमआर शाह की पीठ ने शुक्रवार को आरबीआई से मौजूदा डिस्क्लोजर पॉलिसी भी खत्म करने को कहा है, जिसकी वजह से आरटीआई के तहत सूचना को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। कोर्ट ने आरबीआई को वर्ष 2015 के आदेश का पालन न करने को लेकर फटकार लगाई, जिसमें पारदर्शिता कानून के तहत सूचना को सार्वजनिक करने को कहा गया था। पीठ ने यह माना कि आरबीआई ने कोर्ट की अवमानना की है। हालांकि कोर्ट ने कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की और चेतावनी दी कि भविष्य में आदेश का उल्लंघन किया तो आरबीआई को अवमानना के केस का सामना करना पड़ेगा।
गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने 2015 में कहा था, ‘हमारा मानना है कि कई वित्तीय संस्थान ऐसे काम में लिप्त हैं जो न तो साफ हैं और न पारदर्शी। आरबीआई उनके कामों पर पर्दा डाल रहा है। जबकि आरबीआई का कर्तव्य है कि उन बैंकों के खिलाफ सख्त ऐक्शन ले जो गैरकानूनी कारोबारी गतिविधियों में लिप्त हैं।’ गलत कारोबारी गतिविधियों में संलिप्त संस्थानों की जानकारी आरटीआई के तहत सार्वजनिक करने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद बैंकिंग रेग्युलेटर जानकारी देने से इनकार करता रहा है और इसके लिए जो नीति बनाई वह भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश से मेल नहीं खाती।
सुप्रीम कोर्ट ने रिजर्व बैंक को अंतिम मौका देते हुए कहा, ‘इस अदालत द्वारा पारित आदेश के उल्लंघन पर हम सख्त नजर रख सकते थे, लेकिन हम डिस्क्लोजर पॉलिसी को खत्म करने का आखिरी मौका दे रहे हैं जो इस कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।’ कोर्ट ने रिजर्व बैंक की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि रिपोर्ट में बैंकिंग ऑपरेशंस की गोपनीय जानकारी होती है और पूरी रिपोर्ट सार्वजनिक करना ठीक नहीं। कोर्ट ने वर्ष 2015 के आदेश पर दोबारा विचार की अपील भी खारिज कर दी।

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