बदलाव की बयार
- ऐसे नेताओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अपनाया सख्त रुख
- साथ ही चुनाव आयोग की सीमित शक्तियों पर जताई नाराजगी
देशभर में लोकसभा चुनाव का प्रचार चरम पर है। अधिकतर प्रत्याशी धार्मिक और जाति के आधार पर वोट मांगने में लगे हैं। इस पर उच्चतम न्यायालय ने कड़ा ऐतराज जताया है।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव के दौरान अपनी चुनावी रैलियों में धार्मिक आधार पर वोट मांगने वाले नेताओं पर कोई सख्त कार्रवाई न करने पर चुनाव आयोग की सीमित शक्तियों को लेकर नाराजगी जताई है।
प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व वाली पीठ ने चुनाव आयोग के प्रतिनिधियों से मंगलवार को कोर्ट में पेश होने को कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही। इस याचिका में उन दलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी, जिनके नेता धर्म और जाति के आधार पर चुनाव के दौरान में वोट मांगते हैं।
सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग से पूछा, ‘मायावती ने धार्मिक आधार पर वोटिंग करने वाले बयान पर आपके नोटिस का जवाब तक नहीं दिया है। आपने क्या किया?’ इस पर आयोग ने अपनी बेबसी जताते हुए शीर्ष अदालत को बताया कि उनकी शक्तियां सीमित हैं। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में मंगलवार को भी सुनवाई जारी रखेगा। जिसमें
चुनाव आयोग के अधिकारियों से भी कोर्ट में मौजूद रहने को कहा गया है।
गौरतलब है कि देवबंद में सपा—बसपा और रालोद गठबंधन की एक रैली के दौरान बसपा प्रमुख मायावती ने कहा था कि मुस्लिम मतदाताओं को भावनाओं में बहकर अपने वोट को बंटने नहीं देना है। इस बयान को लेकर कई पार्टियों ने नाराजगी जाहिर की थी। दूसरी ओर इस बयान के जवाब में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी ‘बजरंग बली और अली’ का जिक्र कर माया पर भी निशाना साधा था। योगी के इस बयान की भी काफी आलोचना की गई थी।
इसके बाद बीते गुरुवार को चुनाव आयोग ने दोनों नेताओं को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। आयोग ने माया को चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी मानने के साथ ही धारा 123 (3) के तहत जनप्रतिनिधि कानून 1951 तोड़ने का भी दोषी माना था। इस कानून के तहत प्रत्याशी धार्मिक आधार पर वोट देने की मांग नहीं कर सकते और न ही वोटरों को धर्म के आधार पर मतदान के लिए कह सकते हैं।