बहुत याद आएंगे चमोली के राणा दादाजी

  • खन्नी गांव के पुरोधा भूपाल सिंह के निधन से ग्रामीणों और क्षेत्र में शोक की लहर 
  • फौज में देश की सरहदों की हिफाजत करते हुए सूबेदार पद से हुए थे रिटायर
  • लगातार 25 साल प्रधान रहकर गांव में विकसित की मूल सुविधायें

देहरादून। पहले फौज में सरहदों पर देश की हिफाजत की और फिर सूबेदार पद से रिटायर्ड होकर गांव के विकास के लिए कमर कसी और । ऐसे शख्स का चले जाना सब के लिए गहरा आघात है। जनपद चमोली के विकासखंड पोखरी के खन्नी गांव निवासी भूपाल सिंह राणा के निधन से एक युग का अवसान हो गया।
भूपाल सिंह एक ऐसी शख्सियत थे जिन्होंने समाज हित के लिए अपना सर्वस्व यौछावर कर दिया। वर्ष 1962 में भारत-चीन का युद्ध हो या फिर पाकिस्तान के साथ 1965 और 1971 की जंग हो, दुश्मनों के दांत ऐसे खट्टे किए कि वे दुम दबाकर भाग खड़े हुए। वर्ष 1983 में सूबेदार पद से रिटायर्ड हुए तो अपने गाँव के दीन-हीन हालात देखकर उनका दिल पसीज गया और गांव को प्रगति के पथ पर आगे बढ़ाने के लिए वे सामाजिक कार्यों में जुट गए। वह 1995 में खन्नी गांव के प्रधान बने और उन्होंने गांव के विकास की शुरूआत की। इसके बाद वह वर्ष 1990 में फिर ग्राम प्रधान चुने गए। उनका यह विजय रथ वर्ष 2010 तक थमा ही नहीं। इस अवधि में उन्होंने गाँव में पैदल रास्ते, प्राइमरी स्कूल, पेयजल, सीसी मार्ग आदि बुनियादी व्यवस्थाएं विकसित की। निरंतर 25 वर्ष  प्रधान पद पर निर्वाचित होना इस बात का गवाह है कि वे गांव के प्रति कितने समर्पित थे। ग्रामीणों के साथ सहज, सरल और एक अभिभावक की भूमिका उनमें हमेशा झलकती थी। किसी के चाचा, किसी से ताऊ और छोटे बच्चों के दादा जी बनकर उनकी छत्रछाया पूरे गाँव पर हमेशा रही। 
यही कारण है कि उनके जाने के बाद पूरा गांव ऐसा महसूस कर रहा है जैसे वट वृक्ष टूट गया हो जिसकी छाँव में पूरा गांव रहता था। 87 वर्षीय भूपाल सिंह राणा के निधन से गाँव ही नहीं बल्कि पूरे क्षेत्र में शोक की लहर है। वह महीनों से बीमार चल रहे थे। इसके बावजूद वह गाँव के सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक अनुष्ठानों में हमेशा आगे खड़े रहते थे।

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