‘वाद’ और कैडर भी काबिल प्रत्याशी पर भारी!

कड़वी हकीकत

  • जनता की इस कमजोरी का फायदा उठाती रही हैं सभी राजनीतिक पार्टियां 
  • प्रत्याशी को टिकट देने से पहले सभी पार्टियां रखती हैं ‘वाद’ और कैडर का ध्यान  

देहरादून। आजादी के बाद से ही हो रहे चुनावों में ‘वाद’ यानी जातिवाद और क्षेत्रवाद के साथ कैडर वोटर भी बेहद अहम भूमिका अदा करते रहे हैं। जनता की इस कमजोरी का फायदा अमूमन सभी राजनीतिक पार्टियां लंबे समय से उठाती रही हैं। किसी प्रत्याशी को टिकट देने से पहले सभी पार्टियां इन ‘वाद’ और कैडर का पूरा ध्यान रखती हैं। 
खास बात यह है कि कई बार तो ये ‘वाद’ चुनावी लहर में बदल जाते हैं और एकतरफा मतदान भी देखने को मिलता है। इसके कई साइड इफेक्ट्स भी देखने को मिलते हैं। ये ‘वाद’ चुनाव में इतनी प्रभावी भूमिका निभाते हैं कि क्षेत्र विशेष में जनता दशकों से जिन परेशानियों और समस्याओं से जूझ रही होती है और चुनाव से पहले लोगों की प्राथमिकता ऐसे उम्मीदवारों को वोट देने की होती है जो उनके क्षेत्र का विकास करे और उनकी समस्याओं का समाधान करे, लेकिन चुनाव प्रचार के चरम पर पहुंचते ही सारे मुद्दे हवा हो जाते हैं और सिर्फ ‘वाद’ और कैडर ही प्रत्याशी की सबसे बड़ी योग्यता बनकर उसके सिर पर जीत का सेहरा सजा देते हैं। 
बहुत बार जातिवाद और क्षेत्रवाद के कारण काबिल प्रत्याशी को हार का सामना करना पड़ा है। हालांकि चुनाव के बाद जब मतदाताओं के सिर से ये भूत उतरते हैं तो अपनी गलती समझ में आती है, लेकिन तब तक देर हो चुकी होती हैं और पांच साल तक जनता अपनी करनी को भुगतती है। विडंबना यह है कि अगले चुनाव में फिर कैडर और क्षेत्रवाद जैसे मुद्दे हावी हो जाते हैं और इतिहास अपने को दोहराता रहता है।

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