श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने को राज्यों से नहीं लेंगे सहमति!

मोदी सरकार का फैसला

  • लोगों को भेजने वाली और बुलाने वाली राज्य सरकारों के आग्रह पर ही चलेंगी विशेष ट्रेनें
  • शुरुआती और आखिरी स्टेशन के बीच में ट्रेनें किसी भी स्टेशन पर नहीं रुकेंगी
  • श्रमिकों को ट्रेन में बैठाने से पहले स्क्रीनिंग करवाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी
  • रेल मंत्री बोले- 20 लाख मजदूरों को 1,565 ट्रेनों से उनके गृहराज्य में घर पहुंचाया

नई दिल्ली। आज मंगलवार को मोदी सरकार ने एक बड़ा फैसला लेते हुए बताया कि श्रमिक स्पेशल ट्रेनों को चलाने के लिए संबंधित राज्यों की मंजूरी की जरूरत नहीं है। इससे पहले गृह मंत्रालय ने प्रवासी श्रमिकों को उनके गृह राज्यों में पहुंचाने के लिए इन ट्रेनों को चलाने के लिए रेलवे के लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग सिस्टम (एसओपी) जारी किया।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने मंगलवार को ट्वीट में बताया, ‘पश्चिम बंगाल, झारखंड और छत्तीसगढ़ इन ट्रेनों को मंजूरी देने के मामले में पीछे हैं।’ एक मई से रेलवे ने 1,565 प्रवासी श्रमिक ट्रेनों का चलाया गया है। 20 लाख से अधिक प्रवासियों को उनके गृह राज्यों में पहुंचाया है।
रेल मंत्री ने कहा कि रेलवे द्वारा 20 लाख से अधिक कामगारों को 1,565 श्रमिक स्पेशल ट्रेनों का संचालन कर उनके घर भेजा जा चुका है। अकेले उत्तर प्रदेश 837, बिहार 428 और मध्यप्रदेश 100 से अधिक ट्रेनों की अनुमति दे चुके हैं। पहले यह ट्रेनें राज्य सरकार की मांग पर चल रही थीं। इस दौरान गृह मंत्रालय की गाइडलाइन का पूरा पालन किया जा रहा है। कोच में यात्रियों को सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बैठाया जा रहा है। रवानगी और संबंधित स्टेशन पर पहुंचने पर उनकी थर्मल स्क्रीनिंग की जाएगी। उन्होंने बताया कि गृह जिले में 14 दिन क्वारंटाइन करने के बाद ही उन्हें घर भेजा जाएगा। लोगों को भेजने वाली और बुलाने वाली राज्य सरकारों के आग्रह पर ही विशेष ट्रेनें चलेंगी। शुरुआती और आखिरी स्टेशन के बीच में ट्रेनें कहीं नहीं रुकेंगी। श्रमिकों को ट्रेन में बैठाने से पहले स्क्रीनिंग करवाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी होगी। जिन लोगों में लक्षण नहीं होंगे, उन्हें ही जाने की इजाजत मिलेगी।
रेलवे के प्रवक्ता राजेश बाजपेयी ने बताया कि नई एसओपी के बाद श्रमिक विशेष ट्रेनों को चलाने के लिए राज्यों की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी।

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