चैंपियन का वार निशंक बेक़रार

बिछी चुनावी बिसात

  • हरिद्वार संसदीय सीट पर फिर गरमाया स्थानीय बनाम प्रवासी मुद्दा
  • खानपुर विधायक चैंपियन ने भाजपा हाई कमान से अपनी पत्नी रानी देवयानी के लिये हरिद्वार संसदीय सीट के लिये टिकट मांगा
  • मौजूदा सांसद और इस बार टिकट के प्रबल दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक को ‘प्रवासी पक्षी’ बताने से भाजपा में हलचल
  • राजनीतिक हलकों में सबकी निगाहें इस बात पर लगी हैं कि अब निशंक इन आरोपों का क्या देते हैं जवाब

हरिद्वार। लोकसभा चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने के साथ ही भाजपा में टिकट की मारामारी मच गई है। खानपुर विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने न केवल भाजपा हाई कमान के सामने अपनी पत्नी व ज़िला पंचायत सदस्य रानी देवयानी का टिकट का आवेदन प्रस्तुत कर दिया बल्कि मौजूदा पार्टी सांसद व पार्टी टिकट के प्रबल दावेदार पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निशंक को ‘प्रवासी पक्षी’ भी बता दिया। इससे निशंक के समर्थकों की भी त्योरियां चढ़ गई हैं और भाजपा विधायक के ही भाजपा सांसद के खिलाफ मोर्चा खोलने से पार्टी में हलचल मच गई है। इसके साथ ही सबकी निगाहें इस बात पर लगी हैं कि अब निशंक इन आरोपों का क्या जवाब देते हैं।
चैंपियन ने सांसद डा निशंक के करोड़ों की विकास योजनाओं के शिलान्यास पर भी सवाल उठाते हुए कहा था कि इनके तो वर्क आर्डर और टेंडर भी नहीं हुए हैं। अगर सत्ता परिवर्तन हो गया तो ये सब कार्य ठंडे बस्ते में चले जाएंगे। इसके बाद सांसद के मीडिया प्रतिनिधि ओम प्रकाश जमदग्नि ने तत्काल रुड़की आकर प्रेस कांफ्रेंस की और चैंपियन के आरोपों का खंडन किया। इस बीच पार्टी टिकट पर हुई चौतरफा दावेदारी व स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे से पार्टी की राजनीति एकाएक गरमा गई हैं। ध्यान रहे कि हरिद्वार के निवर्तमान मेयर मनोज गर्ग ने भी टिकट पर अपनी दावेदारी ठोक दी है। मुख्यमंत्री के सलाहकार प्रो नरेंद्र सिंह और पूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद की दावेदारी पहले से ही चली आ रही है। लेकिन खानपुर विधायक के तेवरों ने निशंक समर्थकों को तिलमिला दिया है।
जब मामला स्थानीय बनाम बाहरी का हो तो निशंक के सामने अपने बड़े कद और हाल में घोषित की गई विकास योजनाओं के अलावा बताने को कुछ ज़्यादा नहीं रह जाता। इसमें भी एक पेंच है। दरअसल, निशंक ने हरिद्वार में दोबारा चुनाव लड़ने की बाबत बहुत देर में सोचा। यदि वह कुछ देर पहले सोचते तो केंद्र से जो पैकेज उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए फरवरी के अंत में मंज़ूर कराया, उसी पैकेज को वह छह माह पहले मंज़ूर कराते। इसका परिणाम यह होता कि परियोजनाओं पर काम शुरू हो चुका होता और चैंपियन के पास यह कहने की गुंजाइश ही नहीं बचती कि “विकास कार्यों की केवल चुनावी घोषणा हुई है। शासनादेश जारी नहीं हुए।”
अब जमदग्नि शासनादेश और टेंडर आदेश जारी होने के दस्तावेज़ लेकर सामने तो आये हैं लेकिन मामला तो विवाद में उलझ ही गया। वैसे छह माह पहले निशंक को यह उम्मीद भी नहीं थी कि “स्थानीय बनाम बाहरी” की मु​हिम यहाँ रंग दिखाने की स्थिति में आ सकती है। लेकिन अब जो है सो है।
खास बात यह है कि “प्रवासी पक्षी” का यह शब्द सवसे पहले वर्ष 2009 में हरीश रावत के खिलाफ कांग्रेस नेता ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी ने तब उपयोग किया था जब ब्रह्मचारी खुद अपने लिए टिकट की उम्मीद कर रहे थे। हरीश रावत ने तो तब इसे गलत साबित किया था कि संसदीय क्षेत्र में ही ब्रह्मस्वरूप ब्रह्मचारी अकेले पड़ गए थे। तब हरीश रावत ने टिकट भी लिया था और शानदार जीत भी दर्ज की थी। लेकिन अब निशंक इसे किस रूप में साबित करते हैं यह देखने वाली बात होगी। बहरहाल, उनके समर्थकों के आक्रामक तेवरों से यह तो ज़ाहिर हो ही गया है कि मैदान छोड़ने का इरादा तो उनका भी नहीं है।
दूसरी ओर, जहाँ तक सवाल चैंपियन का है, भाजपा में खोने को उनके पास भी कुछ नहीं है। साफ़ हो गया है पार्टी उन्हें महज़ विधानसभा टिकट दे सकती है, इसके अलावा कुछ नहीं। अब ज़ाहिर है कि यह टिकट तो उन्हें कांग्रेस भी दे सकती है और वह बिना किसी पार्टी के टिकट के भी जीतकर आ सकते हैं। कम से कम एक बार तो वे ऐसा कर भी चुके हैं। यानी चैंपियन भी खुलकर खेलने की स्थिति में हैं। यह अलग बात है कि उनके तेवरों ने स्थानीय बनाम प्रवासी की मुहिम को एकाएक बड़ी ताकत दे दी है। दूसरी ओर कांग्रेस में हरीश रावत के चाहने वालों की कमी नहीं है। हरिद्वार जिले की सभी विधानसभा सीटों पर उनका ठीक-ठाक प्रभाव है। रावत को बाहरी प्रत्याशी कहने वालों की संख्या कम है जबकि उन्हें हरिद्वार से टिकट दिए जाने की मांग करने वालों की संख्या अधिक है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि स्थानीय लोगों का साफ तौर पर कहना है कि पांच साल तक सांसद रहे डॉ निशंक ने क्षेत्र की जनता से कोई संवाद नहीं रखा। मीडिया से भी उन्होंने दूरी बनाए रखी। केवल कुछ खास लोगों के ही संपर्क में रहे। साथ ही उनकी सांसद निधि से क्षेत्र में कोई विकास कार्य होता नहीं दिखा।
उधर अगर बात करें कांग्रेस के भावी प्रत्याशी व पूर्व सांसद तथा पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की तो वह हरिद्वार जनपद में अपनी अलग पहचान रखते हैं। मंगलौर विधानसभा से लेकर झबरेड़ा, रुड़की, कलियर लक्सर खानपुर तथा हरिद्वार ग्रामीण में रावत की पकड़ काफी मजबूत है। यह बात भी है कि यदि भाजपा कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन की मांग को अनदेखा नहीं करती तथा उनकी पत्नी को हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी घोषित करती है तो हरिद्वार संसदीय सीट पर मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here