जनता भगवान भरोसे
- इस खतरनाक और चौंकाने वाले सच को अब मोदी सरकार ने भी माना
- 2016 में आई डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट से पहले सरकार ने किया था किनारा
- अब स्वास्थ्य मंत्रालय ने देश में 57.3 फीसद डॉक्टरों के फर्जी होने को बताया सच
नई दिल्ली। हमारे देश में एलोपैथी की प्रैक्टिस कर रहे ज्यादातर डॉक्टर नकली हैं! वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट तो यही कहती है और अब मोदी सरकार ने भी इस चौंकाने वाले सच को माना है।
गौरतलब है कि वर्ष 2016 में भारत के स्वास्थ्य कर्मियों पर डब्ल्यूएचओ की एक रिपोर्ट आई थी। इसमें कहा गया था कि देश में एलोपैथिक मेडिसिन की जितने भी डॉक्टर प्रैक्टिस कर रहे हैं, उनमें से 57.3 प्रतिशत के पास कोई मेडिकल क्वालिफिकेशन है ही नहीं। तब सरकार ने इस बात को मानने से इनकार कर दिया था। जनवरी 2018 में लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा ने इस रिपोर्ट को बकवास करार दिया था, लेकिन अब उसी स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस आंकड़े को अधिकृत तौर पर सही बताया है।
हाल में लाए गए नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट के तहत सामुदायिक स्वास्थ्य पेशेवरों (सीएचपी) को अनुमति देने के लिए सरकार ने डब्ल्यूएचओ की उस पुरानी रिपोर्ट का सहारा लिया है। नेशनल मेडिकल कमीशन एक्ट के संबंध में पीआईबी द्वारा 6 अगस्त को जारी किए गए एक एफएक्यू में कहा गया है कि वर्तमान में एलोपैथिक मेडिसिन की प्रैक्टिस कर रहे 57.3 फीसद लोगों ने मेडिकल की शिक्षा ली ही नहीं है।
वर्ष 2001 की जनगणना पर आधारित डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रैक्टिस करने वाले महज 20 फीसद डॉक्टर्स ने मेडिकल की शिक्षा प्राप्त की है। इसमें ये भी बताया गया था कि प्रैक्टिस करने वालों में से 31 फीसद तो ऐसे लोग हैं जिन्होंने सिर्फ कक्षा 12वीं तक की पढ़ाई की है।
स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी इस एफएक्यू में कहा गया है कि ज्यादातर ग्रामीण जनता के पास अच्छी स्वास्थ सेवा है ही नहीं। वे नकली डॉक्टरों के चंगुल में फंसे हैं। इस एफएक्यू में डब्ल्यूएचओ की साल 2016 की उसी रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसे सिर्फ डेढ़ साल पहले स्वास्थ्य मंत्रालय ने मानने से इनकार कर दिया था।