समय का फेर
- मोदी-योगी की चुनौती से निपटने को आज एक साथ मंच पर नजर आएंगे माया और मुलायम
- बसपा सुप्रीमो गेस्ट हाउस कांड भुलाकर सपा के गढ़ इटावा में मुलायम के लिए मांगेंगी वोट
कहावत है कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है, लेकिन जब बात सियासत की हो तो यह कहावत और ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है। करीब 24 साल तक एक-दूसरे को बेहद नापसंद करने वाले सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती एक मंच पर नजर आएंगे। गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर बहनजी सपा के गढ़ इटावा में मुलायम सिंह के लिए वोट मांगेंगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इटावा में बहनजी का ‘नेताजी’ के लिए वोट मांगना लोकसभा चुनाव के बीच देशभर में एक बड़ा राजनीतिक संदेश देने की कोशिश है। बसपा सुप्रीमो यूपी में मोदी और सीएम योगी की चुनौती से निपटने के लिए दशकों पुरानी दुश्मनी को भुलाकर सपा व बसपा के कार्यकर्ताओं में एकजुटता का संदेश देना चाहती हैं। विश्लेषकों के मुताबिक इस रैली के जरिए माया चाहती हैं कि उनके कोर वोटर और सपा के कोर वोटर भी अपनी शत्रुता को भुला दें और भाजपा को हराने के लिए एक साथ आएं। साथ ही वह यह संदेश भी देना चाहती हैं कि गेस्ट हाउस कांड उनके लिए अब बीते दिनों की बात हो गई है। विश्लेषकों के अनुसार सपा और बसपा ने न केवल कटु यादों को भुलाया बल्कि अपने पार्टी कार्यकर्ताओं को साथ लाने की कोशिश की है। साथ ही दोनों ही दल यह दर्शाना चाहते हैं कि कांग्रेस और भाजपा के अलावा एक तीसरा मोर्चा भी है। गौरतलब है कि दो जून 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद ऐसा पहली बार होगा जब माया मुलायम के साथ मंच साझा करेंगी।
गौरतलब है कि 1992 में मुलायम ने समाजवादी पार्टी बनाई और 1993 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को जीत मिली थी और मुलायम मुख्यमंत्री बने थे। हालांकि दो ही साल में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते खराब होने लगे। इसी बीच मुलायम को भनक लग गई कि माया भाजपा के साथ जा सकती हैं।
उस समय माया लखनऊ स्थित गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक कर रही थीं। तभी सपा कार्यकर्ता और विधायक वहां पहुंचे और बसपा के कार्यकर्ताओं से मारपीट करने लगे। आरोप है कि मायावती पर भी हमला करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने एक कमरे में बंद होकर खुद को बचा लिया। इस घटना के बाद माया ने समर्थन वापस लेने के ऐलान कर दिया था और भाजपा से समर्थन से मुख्यमंत्री बन गईं। उस घटना के बाद अब 24 साल बाद सियासी समीकरण फिर बदल रहे हैं। वक्त ही बताएगा कि इसका अंजाम क्या होगा?