शीर्ष अदालत का सुझाव
- कहा- ऐसा लगता है कि सिर्फ सरकार के स्तर पर यह सुलझने वाला नहीं
- केंद्र और राज्य सरकारों से जवाब मांगा, किसानों को भी पार्टी बनाने की इजाजत
- पिटीशनर की दलील- किसानों के सड़कें घेरने से जनता परेशान, कोरोना फैलने का भी खतरा
नई दिल्ली। मोदी सरकार के कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों को सड़कों से हटाने की अर्जियों पर आज बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार को किसान संगठनों और दूसरे पक्षों को शामिल करते हुए एक कमेटी बनानी चाहिए, क्योंकि जल्द यह राष्ट्रीय मुद्दा बनने वाला है। ऐसा लगता है कि सिर्फ सरकार के स्तर पर यह सुलझने वाला नहीं।
चीफ जस्टिस एसए बोबडे की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की। अदालत ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि प्रदर्शनकारी किसानों के साथ सरकार की बातचीत का अभी तक कोई साफ नतीजा नहीं निकला है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्यों से जवाब मांगे हैं। अदालत ने किसानों को भी पार्टी बनाने की इजाजत दी है। कल गुरुवार को फिर सुनवाई होगी।
आज बुधवार को सुनवाई के दौरान एक पिटीशनर के वकील ने शाहीन बाग के मामले की दलील दी तो चीफ जस्टिस ने कहा कि कानून-व्यवस्था से जुड़े मामले में कोई उदाहरण नहीं दिया जा सकता। किसानों के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में कई अर्जियां लगी हैं। पिटीशनर्स का कहना है कि किसान आंदोलन के चलते सड़कें जाम होने से जनता परेशान हो रही है। प्रदर्शन वाली जगहों पर सोशल डिस्टेंसिंग न होने से कोरोना का खतरा भी बढ़ रहा है।
किसानों के आंदोलन का आज बुधवार को 21वां दिन है। किसान संगठनों ने आज दिल्ली और नोएडा के बीच चिल्ला बॉर्डर को पूरी तरह से ब्लॉक कर दिया। उधर, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में कई खापों ने आंदोलन को समर्थन दिया है। ये खापें 17 दिसंबर को दिल्ली की सीमाओं पर प्रदर्शन में शामिल होंगी।