‘खंडूड़ी हैं जरूरी’ पर किसके लिये?

सियासी फिजाओं में तैर रहे सवाल

  • कांग्रेसी बने पुत्र की चुनावी नैया को करेंगे पार या अच्छे—बुरे वक्त के वफादार चेले तीरथ के बनेंगे सारथी
  • भाजपा ने लोकसभा चुनाव के लिये जनरल खंडूड़ी को उत्तराखंड चुनाव प्रबंधन समिति में किया शामिल

देहरादून। एक जमाने में ‘खंडूड़ी हैं जरूरी’, नारा उत्तराखंड की राजनीति में भाजपा का चेहरा बन गया था। गत विधानसभा चुनावों तक यह बहुत मायने रखता था। पर लगता है कि इस बार यह नारा कांग्रेस ने अपना लिया है। गढ़वाल सीट पर निवर्तमान सांसद भुवन चंद्र खंडूड़ी के बेटे मनीष खंडूड़ी कांग्रेस प्रत्याशी हैं। इसके साथ ही कांग्रेस ने प्रचार की शुरुआत ‘खंडूड़ी हैं जरूरी’ से कर अपनी रणनीति स्पष्ट कर दी है। कांग्रेस के प्रदेश सह प्रभारी राजेश धर्माणी ने दावा किया, ‘भाजपा के लिए शायद खंडूड़ी अब जरूरी नहीं हों, पर उत्तराखंड और देश के लिए खंडूड़ी आज भी जरूरी हैं।’ उधर भाजपा ने पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व सीएम भुवन चंद्र खंडूड़ी को लोकसभा चुनाव के लिये उत्तराखंड में चुनाव प्रबंधन समिति में जगह दी है। ऐसे में यह सवाल फिर से फिजाओं में तैरने लगा है कि आखिरकार जनरल साहब किस पार्टी के लिये जरूरी हैं।
उनके बेटे मनीष ने कांग्रेस में शामिल होने के बाद पिता को होली का तिलक लगाते हुए फोटो सोशल मीडिया में डाला तो नामांकन के दिन पौड़ी के रामलीला मैदान में उमड़े समर्थकों की भीड़ के बीच ‘खंडूड़ी हैं जरूरी..’ टैग लाइन से लोगों का ध्यान खींचने की कोशिश की है। एक पोस्टर में सबकी चाहत खंडूड़ी है जरूरी…टैग लाइन के साथ मनीष ने खुद का फोटो लगाया। गौरतलब है कि ‘खंडूड़ी हैं जरूरी’ नारा भाजपा ने उस समय इस्तेमाल किया था, जब वर्ष 2011 में निशंक के हाथ से मुख्यमंत्री की कुर्सी फिसल गई थी और खंडूड़ी ने दोबारा मुख्यमंत्री का पदभार संभाला था। इसके बाद वर्ष 2012 में जो विस चुनाव हुए उसमें खंडूड़ी को भाजपा ने राज्य में पार्टी के चेहरे के तौर पर इस्तेमाल किया। लोकपाल और ट्रांसफर पॉलिसी लाकर सीएम खंडूड़ी तब भाजपा के लिए सबसे बड़ी जरूरत बने थे। हालांकि बाद में खंडूड़ी कोटद्वार से चुनाव हार गए थे और कांग्रेस ने विजय बहुगुणा के नेतृत्व में राज्य में सरकार बनाई थी।
मनीष खंडूड़ी ने कहा कि उनके पिता का उनको आशीर्वाद प्राप्त है, उनकी इजाजत से ही वह यहां आए हैं। उनके पिता ने ईमानदारी से काम किया और रक्षा मंत्रालय से संबंधित संसदीय समिति थी उसमें उन्होंने सेना व देश के हित में रिपोर्ट दी। जो खासकर प्रधानमंत्री को नहीं भायी, इसलिए उनको पद से हटा दिया। उधर भाजपा ने जनरल खंडूड़ी को लोकसभा चुनाव के लिये उत्तराखंड में चुनाव प्रबंधन समिति में जगह देकर उनके सामने धर्मसंकट खड़ा कर दिया है। बहरहाल लोगों की निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि जनरल साहब पर पुत्र मोह भारी पड़ता है या उनका शिष्य और उनको तमाम उपलब्यिों से नवाजने वाली पार्टी के प्रति कर्तव्यनिष्ठा?

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