भावी जल संकट से निपटने की तैयारी करें वैज्ञानिक : त्रिवेंद्र

  • मुख्यमंत्री ने किया 13वीं उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस का शुभारंभ
  • कहा, भविष्य में पानी की कमी की समस्या के समाधान के लिये वैज्ञानिक करें चिंतन
  • मुख्यमंत्री ने देवभूमि में वाटर काॅरपस बनाये जाने की जरूरत पर दिया जोर
  • प्रदेश में शीघ्र स्थापित होगी साइंस सिटी, राज्य के हित में हों विज्ञान और शोध

देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने वैज्ञानिकों से भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए जल संवर्द्धन के प्रति विशेष ध्यान देने को कहा। उन्होंने कहा कि वर्षा जल हमारी भविष्य की जरूरतों को पूरा करने में कैसे मददगार हो, इस पर भी वैज्ञानिकों को चिन्तन करना होगा। मुख्यमंत्री ने प्रदेश में वाटर काॅरपस बनाये जाने की भी बात कही।
मंगलवार को विज्ञान धाम झाझरा में तीन दिवसीय 13वीं उत्तराखण्ड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस का शुभारम्भ करते हुए मुख्यमंत्री ने विज्ञान कांग्रेस में आये वैज्ञानिकों एवं शोधार्थियों से प्रदेश हित में जैव विविधता के व्यापक सदुपयोग में भी सहयोगी बनने को कहा। उन्होंने कहा कि जहां भी वैज्ञानिक एकत्र होते हैं उसका लाभ अवश्य मिलता है। इस सम्मेलन का भी राज्य को लाभ मिलेगा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि वर्तमान में हमारे सामने पर्यावरण एवं जैव विविधता को बचाये रखने की चुनौती है। इस विज्ञान कांग्रेस में आये वैज्ञानिक इस चुनौती का सामना करने को भी मददगार बनें। हमारे सामने भविष्य में पानी की जरूरतों को पूरा करने की भी चुनौती है। इसके लिये वर्षा जल संग्रहण की दिशा में हमें सोचना होगा। पिथौरागढ़, पौड़ी के साथ ही देहरादून में जलाशय बनाये जा रहे हैं। नदियों के प्रवाह को बनाये रखना भी हमारे लिये चुनौती है। इस चुनौती का सामना हम वर्षा जल संग्रहण के साथ ही व्यापक स्तर पर जलाशयों के निर्माण से कर सकते हैं। इससे हम ग्रेविटी आधारित पेयजल की आपूर्ति करने के साथ ही प्राकृतिक जल स्रोतों को रिचार्ज करने में भी सफल हो सकते हैं।
उन्होंने कहा कि भविष्य की जल जरूरतों को पूरा करने के लिये वाटर काॅरपस बनाया जाना भी समय की जरूरत है। ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव हमारे ग्लेशियरों पर भी पड रहा है। ग्लेशियरों के पिघलने से नदियों में पानी की कमी हो रही है। इसलिये भविष्य की जरूरतों के लिये हमें वर्षा जल संग्रहण, नदियों के पुनर्जीवीकरण तथा प्राकृतिक जल श्रोतों के संवर्द्धन की दिशा में कारगर प्रयास करने होंगे। वैज्ञानिकों को इस दिशा में भी सोचना होगा।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विज्ञान का कार्य भ्रम को दूर करना है। कुछ लोगों का कहना है कि बांध से पानी के सोर्स पर प्रभाव पड़ रहा है। इस प्रकार के संशयों को भी वैज्ञानिकों को दूर करना होगा। हमारे युवा वैज्ञानिकों को भी इस दिशा में चिन्तन करना चाहिए। हमने प्रदेश में जल ही जीवन अभियान के तहत जन सहभागिता के कार्यक्रम संचालित किये है। टाॅयलेट में पानी का उपयोग कम हो, इसके लिये भी नई पहल की गई है। पानी की बचत की दिशा में हमें अभी से पहल करनी होगी क्योंकि पानी के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। यह हमारी ज्वलंत समस्या है। इस दिशा में भी हमें पहल करनी होगी।

इससे पूर्व त्रिवेन्द्र ने दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया तथा विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वाले वैज्ञानिक डाॅ.दिलीप कुमार उप्रेती, वैज्ञानिक प्रो. प्रीति गंगोला जोशी के साथ ही डाॅ. ममता सिंह को बेस्ट सांइस टीचर का अवार्ड प्रदान किया। मुख्यमंत्री ने विज्ञानधाम के परिसर तथा प्रस्तावित साइंस सिटी के स्थल का भी निरीक्षण किया। उन्होंने कहा कि साइंस सिटी के निर्माण के संबंध में उनकी केन्द्रीय मंत्री श्री महेश शर्मा से भी वार्ता हुई है। इस अवसर पर त्रिवेन्द्र ने 13वीं उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस की अबस्ट्रैक्ट बुक-2019 तथा उत्तराखंड बायोटेक्नोलाॅजी बुक-2018 का भी विमोचन किया।
कार्यक्रम को विधायक सहदेव पुण्डीर, कुलपति जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्यौगिकी विश्वविद्यालय प्रो. तेज प्रताप, जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान कोसी कट्टारमल अल्मोडा के निदेशक डाॅ. रणवीर सिंह रावल, निदेशक एम्स जोधपुर डाॅ. अरूण मिश्रा, निदेशक वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान डाॅ. कलाचन्द सिंह ने भी शोध के क्षेत्र में हो रहे प्रयासों की जानकारी दी। यू-काॅस्ट के महानिदेशक एवं 13वें उत्तराखण्ड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी कांग्रेस के चेयरमैन डाॅ. राजेन्द्र डोभाल ने इस महत्वपूर्ण विज्ञान कांग्रेस के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि इसमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के लगभग 500 छात्रों के साथ ही वैज्ञानिक एवं शोद्यार्थी भी प्रतिभाग कर रहे हैं।

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