उत्तराखंड की तरह गुजरात में भी भाजपा ने इस नये चेहरे को बनाया सीएम!

  • पाटीदार समाज के भूपेंद्र पटेल बने नये मुख्यमंत्री, आनंदीबेन ने किया खेल!

अहमदाबाद। विजय रूपाणी के इस्तीफे के 24 घंटे बाद ही आज रविवार को गुजरात के नए मुख्यमंत्री पर फैसला हो गया है। भाजपा ने उत्तराखंड की तरह एक बार फिर चौंकाते हुए पहली बार विधायक बने भूपेंद्र रजनीकांत पटेल को अगला सीएम चुना है। चौंकाया इसलिए जैसे उत्तराखंड में पुष्कर सिंह धामी का नाम चर्चाओं में नहीं था और उनको मुख्यमंत्री बना दिया गया। पहली बार विधायक बने भूपेंद्र पटेल का नाम मुख्यमंत्री की रेस में एक बार भी सामने नहीं आया था। वह पहली बार विधायक बने थे और पार्टी ने सीएम बना दिया है।
केवल 12वीं पास भूपेंद्र पटेल कडवा पाटीदार समाज के नेता हैं। वह गुजरात की पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान में उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के करीबी माने जाते हैं। आनंदीबेन ने 2017 का विधानसभा चुनाव लड़ने से मना कर घाटलोडिया सीट से भूपेंद्र पटेल को टिकट दिलवाया था। पटेल ने उस चुनाव में अहमदाबाद जिले की घाटलोडिया सीट से रिकॉर्ड 1.17 लाख वोट से जीत दर्ज की थी। उन्हें 1.75 लाख से ज्यादा वोट मिले थे। माना जा रहा है कि भूपेंद्र को सीएम बनाने के पीछे आनंदीबेन का हाथ है।
विधायक दल की बैठक के बाद पार्टी पर्यवेक्षक नरेंद्र सिंह तोमर ने उनके नाम का ऐलान किया। तोमर ने बताया कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने वाले विजय रुपाणी ने ही विधायक दल की बैठक में भूपेंद्र भाई पटेल के नाम का प्रस्ताव रखा। डिप्टी सीएम नितिन पटेल ने इसका समर्थन किया। इसके बाद विधायक दल ने पटेल के नाम को मंजूरी दे दी। भूपेंद्र भाई जल्द ही मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे, हालांकि उन्होंने शपथ ग्रहण का दिन नहीं बताया है।
सूत्रों के मुताबिक विजय रुपाणी गुजरात के लिए कभी भी स्थायी सीएम थे ही नहीं। उनका जाना तो तय था, बस तारीख तय नहीं थी। तारीख पर मुहर संघ प्रमुख के हाल ही में हुए गुप्त दौरे में मिले फीडबैक के बाद लगा दी गई। हालांकि उन्हें 2022 की जनवरी या फरवरी में इस्तीफा देना था, लेकिन भागवत के गुप्त दौरे ने रुपाणी के सीएम पद की उम्र थोड़ी कम कर दी।
भाजपा के जिन पांच मुख्यमंत्रियों को बदला गया है, उनमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत का कार्यकाल सबसे छोटा रहा। उन्होंने 10 मार्च को पदभार ग्रहण किया और 2 जुलाई को इस्तीफा दे दिया। वे तीन महीने भी कुर्सी पर नहीं रह सके। तीरथ गढ़वाल से लोकसभा सांसद हैं।

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