कोरोना संकट पर घिरे मोदी को बंगाल के नतीजों से नहीं मिली ‘ऑक्सीजन’!

‘दो मई और दीदी आई’

  • पश्चिम बंगाल की हार भाजपा के लिए कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट जैसी
  • मोदी के सामने नया चैलेंज, अब यूपी-उत्तराखंड में लगानी होगी चुनावी वैक्सीन

नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने खेला कर दिखाया है। टीएमसी शुरुआती रुझानों में भाजपा से काफी आगे दिख रही है। वहीं कोरोना त्रासदी के बीच जब देश भर में जब मोदी सरकार की जमकर आलोचना हो रही है, यहां तक कि भाजपा समर्थक भी सरकार और पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं। इस सबके बीच पश्चिम बंगाल की हार भाजपा के लिए कोरोना की पॉजिटिव रिपोर्ट जैसी है। यहां भाजपा को वोटों की पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाई है। हालांकि असम में भाजपा आगे है। ऐसे में पार्टी वेंटिलेटर पर जाने से जरूर बच गई है।
कोरोना की सुनामी के बीच लग रहा है कि मोदी लहर ठहर गई है। इन नतीजों का क्या मोदी के कद पर कोई असर पड़ेगा? इस पर राजनीतिक विश्लेषक एस अनिल कहते हैं कि मोदी और भाजपा ने अपनी पूरी ताकत बंगाल में झोंक रखी थी। ऐसा माहौल भी बनाया कि भाजपा जीत रही है। इसके बावजूद टीएमसी की जीत भाजपा और मोदी के लिए किसी सेटबैक से कम नहीं है। भाजपा की इस हार के पीछे कई वजह हैं, सबसे बड़ी वजह है अति आत्मविश्वास।
गौरतलब है कि बंगाल पूर्वोत्तर भारत का सबसे बड़ा राज्य है। विधानसभा सीटों के लिहाज से भी यूपी के बाद सबसे ज्यादा 294 सीटें यही हैं। ऐसे में देश के दूसरे सबसे बड़े सियासी राज्य को जीतना मोदी और भाजपा के लिए सपने के सच जैसा होना ही था। इसके साथ ही भाजपा के लिए अगले साल मार्च-अप्रैल में यूपी, उत्तराखंड और पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव में दोगुने मनोबल के साथ जाने का रास्ता खुल जाता, लेकिन बंगाल में हार के बाद इन राज्यों में भाजपा को वोटों के वैक्सीन की जरूरत पड़ेगी।

अब अगली बारी उत्तर प्रदेश की : देश के सबसे बड़े सियासी राज्य यूपी में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा ने 2017 में यहां 312 सीटें जीती थीं। 2014 और 2019 में आम चुनाव में मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में भी UP का बड़ा योगदान रहा है। 2014 में एनडीए ने यूपी में 80 में 73 सीटें जीती थीं। 2019 में एनडीए को 62 सीटों पर जीत मिलीं। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव मोदी और भाजपा के भविष्य के लिए काफी अहम हैं। मोदी खुद भी यूपी से ही सांसद हैं, ऐसे में भाजपा का यूपी में सब कुछ दांव पर रहेगा।

उत्तराखंड को ‘उत्तर’ का इंतजार : देवभूमि में भी भाजपा के लिए सब कुछ सामान्य नहीं है। भाजपा को पिछले विधानसभा चुनाव में यहां की 70 में से 57 सीटें मिली थीं। इसके बावजूद आगामी चुनाव से पहले पार्टी को अपना मुख्यमंत्री बदलना पड़ा है। त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया है। अब देखना है कि क्या नए मुख्यमंत्री दोबारा भाजपा को सत्ता में वापस ला पाएंगे? भाजपा को 2019 आम चुनाव में भी राज्य की सभी 5 सीटों पर जीत मिली थी। यहां भी 2022 में मार्च-अप्रैल में चुनाव होने हैं। ऐसे में उत्तराखंड को बचाना मोदी और भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है।

पंजाब को फतह करना आसान नहीं : पंजाब में भी यूपी और उत्तराखंड के साथ अगले साल चुनाव होने हैं। यहां भाजपा हमेशा से अकाली दल के साथ गठबंधन में रही है। अब यहां किसान आंदोलन के चलते अकाली दल भाजपा से अलग हो चुका है। ऐसे में भाजपा के लिए यहां सीटें जीतना आसान नहीं है। भाजपा के पास राज्य में कोई चेहरा भी नहीं है। 

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