- आखिर कब तक खैर मनाते मोबाइल चोरों की ‘कंपनी’ में हर सप्ताह मिलती थी दो दिन की छुट्टी, टारगेट पूरा करने पर 500 रुपये और खाना
- साउथ दिल्ली में बसों में मोबाइल चोरी की वारदात करने वाले गैंग के चार गुर्गे गिरफ्तार, 21 फोन मिले
नई दिल्ली। बसों में यात्रा करने वालों के मोबाइल फोन चुराने वाला गैंग असल में गैंग नहीं, एमएनसी की तरह काम करता था। पकड़े जाने पर गैंग के सरगना ने पुलिस से कहा कि उनका गैंग नहीं, कंपनी थी, किसी मल्टी नैशनल कंपनी (एमएनसी) जैसी। वह टारगेट पूरा होने पर यानी मोबाइल फोन चुराने पर रोज 500 रुपये मेहनताना देते थे और हफ्ते में दो दिन छुट्टी रहती थी।
पुलिस ने मोबाइल चुराने वालों से पूछा कि तुम्हारे गैंग में और कौन-कौन है? चोरों के सरगना ने पुलिस से कहा कि जनाब यह गैंग नहीं बल्कि कंपनी थी। चोरों से हफ्ते में पांच दिन काम लिया जाता था। शनिवार-रविवार छुट्टी रहती थी। साथ ही ‘कंपनी’ में ‘नौकरी’ पर रखे जाने वाले स्टाफ को हर दिन 500 रुपये देने के साथ ही वेज-नॉनवेज और दारू देते थे। काम यानी मोबाइल फोन चुराने का टारगेट पूरा करने के बाद।
चोरों की इस ‘कंपनी’ का सरदार चमन लाल था। उसका राइट हैंड है बोपी बिश्वास। ओम प्रकाश और ज्ञानेश को उन्होंने नौकरी पर रखा था। इस गैंग के गुर्गे दिल्ली के किसी भी इलाके में मोबाइल चुरा सकते थे, लेकिन उनके निशाने पर एमबी रोड से बदरपुर, कालका मंदिर से मां आनंदमयी मार्ग, आउटर रिंग रोड और बीआरटी पर चलने वाली डीटीसी और क्लस्टर बसें थीं। वे हर दिन 7-8 मोबाइल फोन चुरा लेते थे पंजाब के गुरुदासपुर में रहने वाला सनी उनसे दिल्ली आकर हर सप्ताह मोबाइल फोन खरीदकर ले जाता था। चोर बाजार में सबसे अधिक कीमत सैमसंग के फोन की मिलती थी। मगर इसका महंगा फोन भी 10 हजार से अधिक में नहीं बिकता था। पुलिस ने गुरुदासपुर में सनी को पकड़ने के लिए रेड डाली, लेकिन वह बच निकला। बसों में फोन चुराने के लिए इनका गैंग बस के पीछे-पीछे ऑटो लेकर चलता था। बस में फोन चुराने के बाद वे लोग ऑटो में सवार हो जाते थे।