उत्तराखंड आंदोलन के प्रणेता स्व. इन्द्रमणि बडोनी की 96वीं जयंती आज, यूकेडी ने दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि

देहरादून। उत्तराखंड राज्य आंदोलन में अग्रणी नेता और पहाड़ के गांधी के नाम से प्रसिद्ध स्व. इंद्रमणि बडोनी की आज 96 वीं जयंती है। इस अवसर पर उत्तराखंड क्रांति दल ने इन्द्रमणि बडोनी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर उक्रांद केंद्रीय महामंत्री ने कहा कि अलग राज्य बनाने के लिए आंदोलन की शुरुआत करने वाले इंद्रमणि बडोनी को उत्तराखंड का गांधी यूं ही नहीं कहा जाता है इसके पीछे उनकी महान तपस्या व त्याग रही है। राज्य आंदोलन को लेकर उनकी सोच और दृष्टिकोण को लेकर आज भी उन्हें शिद्​दत से याद किया जाता है।
कौन थे इन्द्रमणि बडोनी… इंद्रमणि बडोनी आज ही के दिन यानी 24 दिसंबर, 1925 को टिहरी जिले के जखोली ब्लॉक के अखोड़ी गांव में पैदा हुए थे। उनके पिता का नाम सुरेश चंद्र बडोनी था। साधारण परिवार में जन्मे बड़ोनी का जीवन अभावों में गुजरा। उनकी शिक्षा गांव में ही हुई। देहरादून से उन्होंने स्नातक की उपाधि हासिल की थी। वह ओजस्वी वक्ता होने के साथ ही रंगकर्मी भी थे। लोकवाद्य यंत्रों को बजाने में निपुण थे।

गांधी जी की शिष्या मीरा बेन से ली प्रेरणा… आजादी के बाद गांधी जी की शिष्या मीरा बेन 1953 में टिहरी की यात्रा पर गयी। जब वह अखोड़ी गाँव पहुंची तो उन्होंने गाँव के विकास के लिए गांव के किसी शिक्षित व्यक्ति से बात करनी चाही। अखोड़ी गांव में बडोनी ही एकमात्र शिक्षित व्यक्ति थे। मीरा बेन की प्रेरणा से ही बडोनी सामाजिक कार्यों में जुट गए। 

बडोनी के केदार नृत्य पर थिरके थे नेहरू… इन्द्रमणि बडोनी एक संस्कृति कर्मी थे। 1956 की गणतंत्र दिवस परेड को कौन भूल सकता है। 1956 में राजपथ पर गणतंत्र दिवस के मौके पर इन्द्रमणि बडोनी ने हिंदाव के लोक कलाकार शिवजनी ढुंग, गिराज ढुंग के नेतृत्व में केदार नृत्य का ऐसा समा बंधा की तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु भी उनके साथ थिरक उठे थे।

उत्तराखंड राज्य चाहते थे बडोनी… उत्तराखंड को लेकर इंद्रमणि बडोनी का अलग ही नजरिया था। वह उत्तराखंड को अलग राज्य चाहते थे। वर्ष 1979 में मसूरी में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन हुआ था। वह इस दल के आजीवन सदस्य थे। उन्होंने उक्रांद के बैनर तले राज्य को अलग बनाने के लिए काफी संघर्ष किया था। उन्होंने 105 दिन की पद यात्रा भी की थी।

तीन बार विधायक बने थे बडोनी… तब उत्तराखंड क्षेत्र में बडोनी का कद बहुत ऊंचा हो चुका था। वह महान नेताओं में गिने जाने लगे। सबसे पहले वर्ष 1961 में अखोड़ी गांव में प्रधान बने। इसके बाद जखोली खंड के प्रमुख बने। इसके बाद देवप्रयाग विधानसभा सीट से पहली बार वर्ष 1967 में विधायक चुने गए। इस सीट से वह तीन बार विधायक चुने गए। हालांकि उन्होंने सांसद का भी चुनाव लड़ा था। कांटे की टक्कर हुई थी। अपने प्रतिद्वंद्वी ब्रहमदत्त से 10 हजार वोटों से हार गए थे। संघर्ष करते हुए बड़ोनी का 18 अगस्त, 1999 को देहावसान हो गया।

बीबीसी की रिपोर्ट में बड़ोनी का जिक्र… बीबीसी ने उत्तराखंड आन्दोलन पर अपनी एक रिपोर्ट छापी जिसमें उसने लिखा था, “अगर आपने जीवित और चलते-फिरते गांधी को देखना है तो आप उत्तराखंड चले जाएं। वहां गांधी आज भी विराट जनांदोलनों का नेतृत्व कर रहा है”।

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