..तो डार्क वेब है इंटरनेट का अंडरवर्ल्ड!

इंटरनेट की अंधेरी दुनिया

  • वेब का एनक्रिप्टेड पार्ट होता है डार्क वेब और उसे ट्रैक नहीं किया जा सकता
  • गूगल जैसे स्टैंडर्ड सर्च इंजन भी इसे नहीं कर सकते ट्रैक, गोपनीय रहती है इसके यूजर्स की पहचान 
  • इस पर हथियार या ड्रग्स जैसे गैरकानूनी चीजें खरीदते हैं साइबर अपराधी 
  • आम लोगों की नजर से ओझल है इंटरनेट की यह खतरनाक दुनिया
  • लगातार बढ़ रही है यह तरीका अपनाने वाले साइबर अपराधियों की तादाद 

आये दिन अखबारों और टीवी चैनलों पर साइबर ठगों की खबरें आती रहती हैं, लेकिन अधिकतर साइबर ठग पुलिस की पकड़ से दूर रहकर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देते रहते हैं। इसके साथ की साइबर फ्रॉड करने वाले जालसाज अक्सर पकड़ से बच जाते हैं, इसकी वजह है कि वे अपनी पहचान छुपाने में कामयाब रहते हैं। 
अपने बचाव के लिये साइबर अपराधी इंटरनेट की अंधेरी दुनिया कहे जाने वाले डार्क वेब से ऐसे सॉफ्टवेयर खरीद रहे हैं जो अपराध के समय उनकी गोपनीयता बनाए रखता है। गौरतलब है कि वेब का एनक्रिप्टेड पार्ट डार्क वेब होता है और उसे किसी भी तरह ट्रैक नहीं किया जा सकता। यह तरीका अपनाने वाले साइबर अपराधियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। डार्क वेब और इंटरनेट की अंधेरी दुनिया की यह जानकारी आंखें खोलने वाली है और इससे पता चलता है कि आम आदमी को इंटरनेट के विशाल साम्राज्य के मात्र दो या तीन प्रतिशत हिस्से की ही जानकारी है। इसका बहुत बड़ा हिस्सा साइबर अपराधी इस्तेमाल करते हैं।
इस अंधेरी दुनिया के बारे में अब तक जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार डार्क वेब, डीप वेब का एक हिस्सा है जो वर्ल्ड वाइड वेब का नॉन-इंडेक्स पार्ट है। इसलिए इसे गूगल जैसे सर्च इंजनों से ट्रैक नहीं किया जा सकता। डार्क वेब तक पहुंचने के लिए टॉर ब्राउजर जैसे एनक्रिप्टेड नेटवर्क की जरूरत होती है। जिससे इसके यूजर्स की पहचान गोपनीय रहती है। यही वजह है कि हथियार या ड्रग्स जैसे गैरकानूनी चीजें यहां बहुत ही कम कीमत पर उपलब्ध हैं। जहां साइबर अपराधी भी यहां खरीदारी करते दिखाई देते हैं।
आम लोगों की नजर से इंटरनेट की यह दुनिया एक तरह से ओझल ही है। या यूं कहा जाये कि डार्क वेब एक तरह से इंटरनेट का अंडरवर्ल्ड है। यहां घातक हथियार, लोगों के क्रेडिट कार्ड/डेबिट कार्ड के डीटेल्स, ई-मेल एड्रेस, लोगों के फोन नंबर, ड्रग्स, नकली करेंसी और दूसरी चीजें बड़ी आसानी से और काफी कम दाम पर मिल जाती हैं। असल में हम जिस इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं, वह बहुत छोटा हिस्सा है। इंटरनेट के बड़े हिस्से तक आम लोगों की पहुंच नहीं है और इसे ही डार्क वेब कहते हैं। इंटरनेट का यह अजीब संसार अभी तक दुनिया की नजरों से ओझल है। बड़ी संख्या में क्रिमिनल डार्क वेब का इस्तेमाल कर रहे हैं।
साइबर क्राइम पुलिस के एक विशेषज्ञ इंस्पेक्टर का कहना है कि साइबर ठगी में इस्तेमाल होने के कई टूल्स डार्क वेब पर मिल जाते हैं। पिछले कुछ सालों में अपराधियों के डार्क वेब का इस्तेमाल करने के मामले सामने आए हैं। चूंकि सभी मामले पकड़ में नहीं आते, इसलिए इसकी काफी हद तक इस बात की आशंका है कि उनके अनुमान से कहीं ज्यादा संख्या में अपराधी डार्क वेब का प्रयोग कर रहे हैं।
उन्होंने बताया कि पिछले दिनों एक केस की जांच के दौरान एक साइबर ठग ने स्वीकार किया कि उसने डार्क वेब से एक सॉफ्टवेयर डाउनलोड किया था जो उसे नंबर बदलने और ट्रेस होने बचाता था। एक अन्य साइबर विशेषज्ञ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘अगर कोई साइबर ठग अपने नंबर को छिपाने के लिए डार्क वर्ल्ड के टूल का इस्तेमाल करता है तो हमारी जांच वहीं खत्म हो जाती है क्योंकि हमारे पास उसे ट्रैक करने के लिए जरूरी टूल और सॉफ्टवेयर ही उपलब्ध नहीं हैं।’

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