उत्तराखंड को मिले ग्रीन बोनस: त्रिवेंद्र

नीति आयोग की बैठक में बोले सीएम

  • कहा, हम अपने दो-तिहाई भू-भाग पर वनों के संरक्षण से राष्ट्र को दे रहे ईको-सिस्टम सर्विसेज 
  • इन पर्यावरणीय सेवाओं के लिए हमें अपने विकास के अवसरों का करना पड़ रहा परित्याग
  • इसके बदले क्षतिपूर्ति अथवा प्रोत्साहन के तौर पर उत्तराखंड को दी जाये समुचित वित्तीय मदद
  • मिड-डे-मील में उत्तराखंड के परम्परागत अनाज मंडुवा और झंगौरा को भी किया जाए शामिल 
  • उत्तराखण्ड के सीमांत क्षेत्रों में सड़क, रेल और एयर कनेक्टिविटी पर दिया जाये जोर

नई दिल्ली। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में कहा कि उत्तराखंड को अपनी पर्यावरणीय सेवाओं के लिए प्रोत्साहन के रूप में वित्तीय सहायता मिलनी चाहिए। मिड-डे मील में मंडुवा, झंगौरा भी शामिल किए जाए। उत्तराखंड के सीमांत क्षेत्रों में रोड कनेक्टिविटी के साथ एयर व रेल कनेक्टिविटी भी विकसित की जाएं।
मुख्यमंत्री ने आज शनिवार को नई दिल्ली में प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आयोजित नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में उत्तराखंड की महत्ता को रेखांकित करते हुए इस पहाड़ी प्रदेश की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया।
बैठक में मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड राज्य द्वारा अपने दो-तिहाई भू-भाग पर वनों का संरक्षण सुनिश्चित करके राष्ट्र को महत्वपूर्ण पर्यावरणीय सेवायें (ईको-सिस्टम सर्विसेज) प्रदान की जा रही है। इन पर्यावरणीय सेवाओं के लिए हमें अपने विकास के मौकों का परित्याग करना पड़ रहा है। अतः केंद्र सरकार से अनुरोध है कि क्षतिपूर्ति अथवा प्रोत्साहन के तौर पर समुचित वित्तीय सहायता (ग्रीन बोनस) राज्य को उपलब्ध करायी जाये। राज्यों की परम्परागत फसलों को बढ़ावा देने के लिए मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया कि मिड-डे-मील में चावल एवं गेहूँ के अतिरिक्त राज्यों की परम्परागत फसलें जैसे मंडुवा, झिगौरा आदि को भी शामिल करना चाहिए। 
हिमालयी राज्यों की विशिष्ट भू-भौगोलिक परिस्थितियों पर विचार करने तथा इनकी कठिनाइयों  समाधान के लिए नीति आयोग के अन्तर्गत हिमालयी स्टेट रीजनल काउंसिल का गठन किए जाने पर मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री का आभार जताया। केदारनाथ पुनर्निर्माण परियोजना, चारधाम महामार्ग परियोजना, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे परियोजना के लिए भी उत्तराखण्ड की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विशेष रूप से धन्यवाद दिया। त्रिवेंद्र ने कहा कि ये सभी परियोजनायें राज्य के दीर्घकालिक विकास के लिए बहुत उपयोगी हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि नमामि गंगे योजना के माध्यम से गंगा व उसकी सहायक नदियों को प्रदूषण मुक्त करने की दिशा में प्रधानमंत्री ने अभूतपूर्व पहल की है। गंगोत्री से लक्ष्मण झूला-ऋषिकेश तक गंगा के जल की गुणवत्ता को क्लास ए में वर्गीकृत किया गया है, जो हमारे प्रयासों की सफलता को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि इन्वेस्टर्स समिट के बाद उत्तराखण्ड में अभी तक 14,545 करोड़ रुपयों का निवेश हो चुका है


उत्तराखण्ड सरकार द्वारा अक्टूबर 2018 में प्रथम बार निवेशक सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें निवेशकों को आकर्षित करने हेतु कई नीतियों प्रख्यापित की गई हैं। अब तक 1,24,000 करोड़ के 600 एमओयू हस्ताक्षरित किये जा चुके हैं। अब तक 109 एमओयू के सापेक्ष 14,545 करोड़ रुपये का निवेश हो चुका है।
उन्होंने बैठक में जानकारी दी कि उत्तराखंड सरकार द्वारा वर्षा जल संवर्द्धन के लिए विभिन्न जनपदों में जलाशयों का निर्माण किया जा रहा है। जनपद देहरादून में आगामी 30 वर्षों से भी अधिक समय तक निर्बाध जलापूर्ति सुनिश्चित किये जाने के लिए सौंग बाँध पेयजल परियोजना पर कार्य किया जा रहा है। राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2022 तक 5000 समस्याग्रस्त प्राकृतिक जल स्त्रोत को पुनर्जीवित एवं सवंर्द्धित करने का कार्य किया जायेगा। राज्य के विभिन्न विभागों द्वारा वर्ष 2018-19 में वर्षा जल संचय हेतु कुल 19.22 लाख संरचनायें निर्मित की गयी, जिसमें 11,730 लाख लीटर जल संचय की क्षमता है। राज्य सरकार द्वारा बिल्डिंग बाईलॉज में रेन वाटर हार्वेस्टिंग को अनिवार्य किया गया है।इसके साथ ही कुपोषण की समस्या दूर करने के लिए महिलाओं द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूहों के सहयोग से स्थानीय उपज मंडुवा, चौलाई, झिंगौरा इत्यादि से विनिर्मित पोषक आहार ‘ऊर्जा’ को जनपदों में ही तैयार करके अतिकुपोषित बच्चों को पूरक आहार उपलब्ध कराया जा रहा है। 
त्रिवेंद्र ने कहा कि कृषि सेक्टर में आमूलचूल परिवर्तन हेतु संरचनात्मक सुधारों व कृषकों की आमदनी दोगुनी करने के उद्देश्य से एक महत्वाकांक्षी परियोजना ’राज्य समेकित सहकारी विकास परियोजना’ का शुभारम्भ प्रधानमंत्री द्वारा रुद्रपुर में किया गया था। 3340 करोड़ की इस अहम परियोजना से बेमौसमी सब्जी उत्पादन, फल उत्पादन, सगन्ध पौधों की खेती, भैंस पालन, भेड़ एवं बकरी पालन तथा शीत जल मात्स्यिकी आदि क्षेत्रों को विशेष रूप से बढ़ावा मिलेगा। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देने हेतु रूरल ग्रोथ सेन्टरों पर कार्य किया जा रहा है। जिसके अंतर्गत प्रत्येक न्याय पंचायत क्षेत्र में, उस क्षेत्र की मुख्य आर्थिकी के अनुरूप नियोजित आर्थिक विकास किया जायेगा। कृषि के क्षेत्र में कई अभिनव प्रयोग जैसे ट्राउट फार्मिंग, हैम्प कल्टिवेशन एवं प्रोडक्शन, एकीकृत फार्मिंग मॉडल, फार्म मशीनरी बैंक एंव कस्टम हायरिंग सेन्टर्स आदि के माध्यम से कृषि क्षेत्र को बढ़ावा दिया जा रहा है। परम्परागत कृषि विकास योजना के अन्तर्गत प्रथम चरण में 3900 जैविक क्लस्टर स्वीकृत किये गये हैं। समस्त पर्वतीय विकास खण्डों को अगले पाँच वर्षों में आर्गेनिक विकास खण्डों में परिवर्तित किया जायेगा।
रावत ने बताया कि राज्य में मृदा कार्ड में दी गयी संस्तुतियों एवं डीबीटी योजना संचालन के उपरान्त उर्वरक खपत में अनुमानतः 20 प्रतिशत तक इनपुट लागत में गिरावट आयी है और खाद की इनपुट सब्सिडी में 140 करोड़ रूपए की बचत हुई है। राज्य सरकार द्वारा, कृषि, औद्यानिकी व उनकी सह-गतिविधियों के लिए 30 वर्ष तक लीज पर भूमि दिये जाने की व्यवस्था की गयी है। साथ ही समस्त कृषि ऋण एवं कृषि गतिविधियों के लिए कृषकों को एक लाख रुपये तक का ऋण बिना ब्याज के उपलब्ध कराया जा रहा है। 
उन्होंने कहा कि राज्य में कृषि व बागवानी को प्रोत्साहित करने के लिए उत्तराखण्ड मण्डी अधिनियम में माडल एक्ट के सापेक्ष निजी मण्डी, संविदा कृषि, कृषक-उपभोक्ता बाजार की व्यवस्था, मण्डी अधिनियम में की गयी है। कृषि उत्पाद विपणन समिति अधिनियम तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955 के सम्बन्ध में कृषि क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए एपीएमसी एक्ट तथा आवश्यक वस्तु अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों में मूलभूत परिवर्तन किए जाने पर बल दिया। उन्होंने सुझाव दिया कि नीति आयोग द्वारा विचारोपरान्त एक चर्चा पत्र तैयार कर राज्यों के साथ विचार-विमर्श करना श्रेयस्कर रहेगा। 
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखंड की अन्तर्राष्ट्रीय सीमायें चीन तथा नेपाल से लगी है। सीमावर्ती एवं दूरस्थ ग्रामीण अंचलों से पलायन राज्य सरकार के समक्ष गम्भीर चुनौती है। इसके लिये सड़क, पानी, बिजली एवं विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार सृजन के लिए निवेश करने की आवश्यकता है। इन सीमान्त क्षेत्रों में रोड, रेल व एयर कनेक्टिविटी को भी विकसित करना होगा। 

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