कभी सुसाइड करने जा रही छात्रा बनी टॉपर!

जिसका कोई नहीं, उसका खुदा है यारो

  • आठवीं की छात्रा भवानी ने माता-पिता की मौत के बाद उसने पढ़ाई की खो दी थीं उम्मीदें
  • किसी के साथ न देने पर भाई को छोड़कर बहन के साथ करने जा रही थी सुसाइड
  • पुलिस इंस्पेक्टर को मार्मिक पत्र लिखकर अपने भाई की देखरेख को कहा था
  • समय रहते बचा ली गई भवानी की जान, स्कूल में हुआ प्रवेश और खुली नई राह
  • भवानी ने सभी छात्र—छात्राओं को दिया संदेश, कहा— जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए 

हैदराबाद। जिंदगी से हताश होकर और किसी के भी साथ न देने से एक आठवीं पढ़ने वाली छात्रा भवानी ने अपने छोटी बहन के साथ खुदकुशी करने की ठान ली और एक पुलिस इंस्पेक्टर को सुसाइड नोट लिखकर अपने भाई की देखरेख करने की प्रार्थना की। उस पुलिस इंस्पेक्टर ने न केवल उन दोनों बच्चियों की जान बच गई, बल्कि उनकी जिंदगी का रुख ही मोड़ दिया।
अतीत के दुखद पन्नों को छोड़ अब भवानी जिंदगी की नई शुरुआत करने जा रही है। कभी मौत को गले लगाने जा रही भवानी ने तेलंगाना में इंटर की परीक्षा में 969 नंबर पाकर टॉप किया है। गौरतलब है कि वर्ष 2016 में आठवीं की छात्रा भवानी के माता-पिता की मौत हो गई। उनकी मौत के बाद उन्हें बहुत सी परेशानियों का सामना छोटी सी उम्र में ही करना पड़ा। तेलंगाना के सिरकिल्ला की रहने वाली भवानी कहीं से भी मदद न मिलने पर अपनी बहन के आत्महत्या करना चाहती थीं। उन्होंने एक इंस्पेक्टर आंटी के नाम पर सुसाइड नोट लिखा और उनसे कहा कि वह उन दोनों के मरने के बाद उनके भाई का ख्याल रखें।
हालांकि उस महिला इंस्पेक्टर ने समय रहते दोनों बहनों की जान बचा ली। भवानी ने बताया कि उनकी मां की मौत के बाद हुजूराबाद इंस्पेक्टर माधवी आई थीं। उसने उन्हीं को संबोधित करके सुसाइड नोट लिखा था। माधवी ने समय रहते लोकल पुलिस की सहायता से दोनों बहनों की जान बचा ली। उनकी काउंसलिंग की गई। माधवी ने व्यक्तिगत तौर पर इस मामले में रुचि ली और भवानी का प्रवेश कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में करा दिया ताकि वह वहां सुरक्षित रहे।
भवानी ने बताया कि आवासीय विद्यालय में प्रवेश के बाद उसकी जिंदगी में बदलाव आ गया। पढ़ाई में मन लगने के बाद बाकी बातें उसके दिमाग से निकल गईं। दसवीं में उसे 9.7 सीजीपीए मिले थे। वह सिरकिल्ला जिले के टॉप टेन छात्र—छात्राओं में से एक थी। भवानी को उम्मीद थी कि उसे 990 नंबर मिलेंगे, लेकिन उसे 969 नंबरों से ही संतोष करना पड़ा। वह सभी छात्र—छात्राओं को कहना चाहती है कि जिंदगी में कभी हार नहीं माननी चाहिए। भवानी खुद भविष्य में सिविल इंजीनियर बनने की चाह रखती है।

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