211 साल से भारत के किसानों को नहीं मिली फसलों की वाजिब कीमत!

  • अंग्रेजी जमाने के 41 वायसराय, आजाद भारत के 14 प्रधानमंत्री और 17 सरकारें नहीं दिला पाये सही दाम

नई दिल्ली। दिल्ली में 14 दिन से चल रहे किसान आंदोलन के आक्रोश की जड़ें करीब 211 साल पुरानी हैं। इसका सबूत हैं अग्रेजों के जमाने के वो दस्तावेज, जो कहते हैं कि किसानों के बारे में देश में सबसे पहला अध्ययन 1879 में सामने आया था। तब वायसराय रहे लॉर्ड मेयो (1869 से 1872) के आदेश पर तत्कालीन भारत में कृषि, राजस्व और वाणिज्य सचिव एओ ह्यूम द्वारा तैयार एक रिपोर्ट में कहा गया था कि किसान पिछले 70 सालों से अपनी फसलों की सही कीमत के लिए जूझ रहे हैं।
इस रिपोर्ट का निष्कर्ष ये था कि किसानों की आधी उपज बिचौलिये, सरकारी लोग और बड़े जमींदार ले जाते हैं। किसानों को बमुश्किल छठा हिस्सा मिल पाता है। तब से अब तक देश में 41 वायसराय-गवर्नर जनरल, 14 प्रधानमंत्री और देश की 17 सरकारें बदल चुकी हैं, लेकिन किसानों के हालात वहीं के वहीं हैं। किसानों के बारे में देश की सबसे पहली रिपोर्ट में ये
तीन समाधान सुझाए गए थे, पर अब तक नहीं हुआ। ये समाधान इस प्रकार हैं…
1. अधिकारी किसानों को हर रोज 10 घंटे दें : विभाग के काबिल सलाहकार दफ्तरों में नहीं, किसानों के बीच रहकर समस्याएं मिटाएं। रोजाना उन्हें दस घंटे दें। दस साल तक एक इलाके में रहें। कृषि कॉलेज खोलें। किसानों से वैज्ञानिक और वैज्ञानिकों से किसान सीखें।

2. किसानों को कला, विज्ञान, उद्योग से जोड़ें : किसानों को उद्योगों, विज्ञान और कला से जोड़ें। यूरोप, अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में उनके उत्पादों का प्रदर्शन करें। खेतों को उद्योगों से जोड़ें। मौसम की जानकारी उन्हें हर रोज दी जाए। गांव-गांव बोटेनिकल गार्डन तैयार करें।
3. कॉलेजों से ज्यादा कृषि संस्थान बनवाएं : भारत में लॉ, शिक्षा के कॉलेजों-विवि से भी अधिक जरूरी कृषि संस्थान हैं, जो किसानों की मदद करें। स्कूलों में कृषि, बॉटनी, एग्रो केमिस्ट्री, वेजिटेबल फिजिओलॉजी और जिओलॉजी पढ़ाएं। प्रैक्टिकल शिक्षा जरूरी है।
3 ताकतें जो किसानों के पास तब भी थीं, आज भी हैं : पहली, इस देश के किसान दुनिया में सबसे अनुभवी
खेती के 3000 साल के अनुभवी इन किसानों के सामने इंग्लैंड के किसान कुछ नहीं हैं। आप ऊपर के गांवों को देखें। गेहूं का ठाठें मारता समुद्र। सैकड़ों मील गेहूं के खेतों में खरपतवार तो दूर, घास तक भी नहीं है।
2. आंधी-तूफान के बारे में सटीक अंदाजा : मौसम के बारे में ऐसे पारंगत कि आंधी, तूफान और ओलावृष्टि तक का उन्हें बोध है। कौन से पौधों को कितने समय तक रखें, उनके फसलों के पकने के ज्ञान पर आश्चर्य होता है। ग्रहों और सितारों की भी गजब जानकारी।
3. फसल कब, कहां उगानी है, इसमें महारथ : भारत के किसानों को कौनसी फसल कब, कहां, कितनी और क्यों बोएं, इस सबमें महारथ। अनाजों के भंडारण में माहिर हैं। बीस साल बाद भी एक-एक दाना दमकता मिलता है। पशु चिकित्सा में भी कुशल हैं।
रिपोर्ट में ह्यूम ने जो लिखा था, वो आज भी सटीक : ह्यूम ने यह रिपोर्ट 1 जुलाई 1879 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड लिटन को सौंपी थी। इसमें भारतीय किसानों की तारीफों के साथ-साथ ह्यूम ने लिखा था- ‘कितना शर्मनाक है कि ये किसान 70 साल से एक समस्या से रूबरू हैं और हल नहीं निकला। क्या हम इन्हें तबाह होने देंगे? क्या अपनी आर्थिक धमनियों को ऐसे बर्बाद होने दें? कोई अपनी आंखों के सामने सोने के अंडे देने वाली हंसिनी को दम तोड़ते कैसे देख सकता है?’ ह्यूम के अनुसार मेयो अकेले वायसराय थे, जो खुद किसान थे, इसलिए उन्होंने ये अध्ययन कराया था।
कौन थे ह्यूम? : एओ ह्यूम तत्कालीन भारत में कृषि, राजस्व और वाणिज्य सचिव के पद पर थे। उन्होंने ही इस रिपोर्ट के छह साल बाद यानी 1885 में कांग्रेस की स्थापना करवाई। वे जानते थे कि फसलों का पूरा मूल्य नहीं मिलने और बिचौलियों व बड़े जमींदारों की लूट के चलते किसानों में भारी नाराजगी है, जो अंग्रेजी शासन को उखाड़ सकती है। जब ह्यूम ने वायसराय लिटन को रिपोर्ट सौंपी तो वह नाराज हो गया। उसने (लिटन ने) ह्यूम को राजस्व सचिव के पद से हटा दिया और उनकी रिपोर्ट को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here