कहीं खुल न जाये घोटालों की पोटली !

खतरे की घंटी

  • राज्य गठन के कुछ ही सालों में सामने आये बड़े-बड़े घोटाले
  • देवभूमि की अदालतों में भ्रष्टाचार के कई मामले विचाराधीन

देहरादून। इस बार लाेकसभा चुनाव प्रचार में आरोप—प्रत्यारोप की सियासत के चलते देवभूमि के अहम मुद्दों को किनारे किया जा रहा है, लेकिन  भ्रष्टाचार और घोटालों के मुद्दे परंपरागत वोटरों को प्रभावित कर सकते हैं। गौरतलब है कि उत्तराखंड  में गठन के मात्र 18 वर्ष के अल्प समय में ही भ्रष्टाचार और घोटालों के कई बड़े मामले सामने आये हैं । 
उत्तराखंड उच्च न्यायालय में 10 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का मामला जनहित याचिका के रूप में चल रहा है। इसमें राज्य में उद्योगों की स्थापना के लिए ट्रेड टैक्स अफसरों पर उद्योगपतियों से 1000 करोड़ रुपये लेने और राजकीय कोष में जमा न कराने जैसे आरोप लगाये गये हैं। इस मामले में 10 हजार करोड़ रुपये की टैक्स चोरी का आरोप लगाया गया है। राज्य के 37 अधिकारियों पर इस मामले में तलवार लटकी है। इसके अलावा राज्य में गलत तरीके से करीब 200 करोड़ रुपये का मुआवजा बांटने का एनएच-74 का घोटाला और समाज कल्याण विभाग का करीब 100 करोड़ रुपये का छात्रवृत्ति घोटाला चर्चा में हैं। 
नैनीताल में  विधायक संजीव आर्य ने पिछली सरकार के कार्यकाल में एडीबी के माध्यम से नगर की पेयजल व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बनी योजना में 88 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप लगाया है। उनके पिता व परिवहन मंत्री यशपाल आर्य ने परिवहन निगम में पूर्ववर्ती हरीश रावत की सरकार के समय पुरानी अप्रचलित बीएस-3 मॉडल की रोडवेज की 429 बसों को खरीदने में 100 करोड़ रुपये के घोटाले के आरोप लगाये हैं। नैनीताल में ही दिसंबर 2014 में संयुक्त मजिस्ट्रेट के स्तर पर हुई जांच में  राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्य मिशन एवं राष्ट्रीय शिशु स्वास्य मिशन कार्यक्रम में 4.67 करोड़ के गलत तरीके से इस्तेमाल और एक करोड़ रुपये की शासकीय क्षति पहुंचाने के आरोप भी लगे थे। समेकित जलागम प्रबंधन कार्यक्रम में सरकारी कर्मचारियों, मानसिक दिव्यांगों, संविदा कर्मचारियों और छात्रों के नाम पर करीब 70 लाख रुपये की बंदरबांट का मामला भी न्यायालय में चल रहा है। 
वर्ष 2014-15 के इस मामले में तत्कालीन मुख्यमंत्री के ओएसडी सहित चार अधिकारियों पर मामला चलाने के अदालत आदेश दे चुकी है। इसी तरह जनपद के भीमताल स्थित औद्योगिक आस्थान में बीते 17 सालों में तीन दर्जन से अधिक कंपनियों के अनुदान खाकर भागने और एक भी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई न होने, एक कंपनी एक्वामाल का कई बार नाम बदलकर लाभ लेने, पिछली सरकार के दौर में पांच मई 2017 को एक्वामाल की दो कंपनियों को शराब बॉटलिंग प्लांट की कंपनी शीतला उद्योग इंडस्ट्रीज प्राइवेट लिमिटेड की सरकारी जमीन को नियम विरुद्ध बेचने सहित अरबों रुपये का घोटाला करने का मामला न्यायालय में विचाराधीन है।
 इस बारे में स्थानीय लोगों, खासकर भाजपा नेताओं का कहना है कि भाजपा सरकार के दो वर्ष का कार्यकाल पूरा होने के बाद भी पिछली सरकार के नित नये घोटाले प्रकाश में आ रहे हैं जबकि कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि मामले हवा-हवाई हैं। किसी मामले में जांच मुकाम तक और अदालत से दोषियों को सजा मिलने तक नहीं पहुंची है। अलबत्ता जनता के जेहन में ये मुद्दे कुलबुला रहे हैं। अब देखना यह है कि इन घोटालों का मुद्दा जोर पकड़ता है या नहीं।

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